________________ 158] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र हो जाते हैं। साथ ही, ये पुद्गल-परिवर्त कैसे होते हैं ? यह भी भलीभाँति जानना चाहिए / यहाँ मूलपाठ में बताया गया है कि पुद्गल द्रव्यों के साथ परमाणों के संघात (मंहनन-संयोग) और भेद (वियोग-विभाग) के अनुपात-योग से पुद्गल-परिवर्त्त होते हैं। सामान्यतया पुदगलपरिवत्तों के 7 प्रकार हैं-ग्रौदारिक, वैक्रिय, तेजम, कार्मण, मन, वचन और पान-प्राण पुद्गल परावर्त / औदारिक पुदगल परिवर्त-प्रौदारिक शरीर में विद्यमान जीव के द्वारा जब लोकवर्ती प्रौदारिकशरीरयोग्य द्रव्यों का औदारिक शरीर के रूप में समग्रतया ग्रहण किया जाता है, तब उसे औदारिकपुद्गलपरिवर्त कहते हैं / इसी प्रकार वैक्रियपुद्गलपरिवर्त प्रादि का अर्थ भी समझ लेना चाहिए। प्राशय यह है कि पूर्वोक्त पुद्गलपरिवर्त औदारिक आदि सात माध्यमों से होता है। नरयिक पुद्गलपरिवर्त-अनादिकाल से संसार में परिभ्रमण करते हुए नरयिक जीवों के मात प्रकार के पुद्गलपरिवर्त्त कहे गए हैं। ___ कठिनशब्दार्थ-साहणणा--संहनन अर्थात्-संघात, संयोग / भेद-वियोग या विभाग / समणुगंतव्वा भवंतीतिमक्खाया----सम्यक् प्रकार से जानने योग्य हैं, या जानने चाहिए, इस हेतु से भगवान् द्वारा कहे गये हैं / आण-पाणु-मान-प्राण-श्वासोच्छवास / एकत्व-बहुत्व दृष्टि से चौवीस दण्डकों में प्रौदारिकादि सप्तपुद्गल-परिवत्त-प्ररूपणा 18. [1] एगमेगस्स णं भंते ! जीवस्स केवतिया ओरालियपोग्गलपरियट्टा अतीता ? अगता। [18-1 प्र.] भगवन् ! एक-एक (प्रत्येक) जोव के अतोत प्रोदारिक पुद्गलपरिवर्त कितने from ए [18-1 उ.] गौतम ! वे अनन्त हुए हैं। [2] केवइया पुरेक्खडा ? कस्सति अत्थि, कस्सति गस्थि / जस्तऽस्थि जहण्णणं एगो वा दो वा तिणि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा / [18-2 प्र.] (भगवन् ! प्रत्येक जीव के) भविष्यत्कालीन पुद्गलपरिवर्त्त कितने होंगे ? [18-2 उ.] गौतम ! (भविष्यत्काल में) किसी के (पुद्गलपरिवर्त) होंगे और किसी के नहीं होंगे। जिसके होंगे, उसके जघन्य एक, दो, तीन होंगे तथा उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात या अनन्त होंगे। 1. (क) भगवतो. अ. वत्ति, पत्र 568 (ख) भगवती (हिन्दीविवचन) भा. 4, 5. 2036 2. भगवनी. अ. वृत्ति, पत्र 568 3. (क) बही, अ. वृत्ति, पत्र 568 (ख) 'ग्राणपाण' शब्द के लिए 'पाइयसहमहण्णवो' पृ. 110 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org