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________________ बारहवां शतक : उद्देशक 4] [157 परमाणुपुद्गलों का पुद्गलपरिवर्त्त और उसके प्रकार 14. एएसि णं भंते ! परमाणुपोग्गलाणं साहणणाभेदाणुवाएणं अणंताणता पोग्गलपरिपट्टा सभणुगंतव्वा भवतीति मक्खाया? हंता, गोयमा ! एतेसि णं परमाणुपोग्गलाणं साहणणा जाव मक्खाया। [14 प्र. भगवन् ! इन परमाण-पुद्गलों के संघात (संयोग) और भेद (वियोग) के सम्बन्ध से होने वाले अनन्तानन्त पुद्गलपरिवर्त्त जानने योग्य हैं. (क्या) इसीलिए (मापने) इनका कथन किया है ? [14 उ.] हाँ, गौतम ! संघात और भेद के सम्बन्ध से होने वाले अनन्तानन्त पुद्गलपरिवर्त जानने योग्य हैं, इसीलिए ये कहे गये हैं। 15. कतिविधे णं भंते ! पोग्गलपरियट्ट पनते ? गोयमा ! सत्तविहे पोग्गलपरियह पन्नत्ते, तं जहा–ओरालियपोग्गलपरियट्ट वेउब्वियपोग्गलपरिय? तेयापोग्गलपरियट्ट कम्मापोग्गलपरिय? मणपोग्गलपरियट्ट वइपोग्गलपरिय? आणपाणुपोग्गलपरियट्ट। [15 प्र.] भगवन् ! पुद्गलपरिवत्तं कितने प्रकार का कहा गया है ? [15 उ.] गौतम ! वह सात प्रकार का कहा गया है। यथा--(१) प्रौदारिक पुद्गलपरिवर्त्त, (2) वैक्रिय-पुद्गल परिवर्त, (3) तैजस-पुद्गल परिवर्त, (4) कार्मण-पुद्गल परिवर्त, (5) मनः-पुद्गल परिवर्त, (6) वचन-पुद्गल-परिवर्त और (7) अानप्राण-पुद्गल परिवर्त्त / 16. नेरइयाणं भंते ! कतिविधे पोागलपरियट्ट पन्नते ? गोयमा ! सत्तविधे पोग्गलपरियट्ट पन्नत्ते, तं जहा- ओरालियपोग्गलपरियट्ट वेधियपोग्गलपरियट्ट जाव प्राणपाणुपोग्गलपरियट्टे / [16 प्र.] भगवन् ! नैरयिकों के पुद्गल-परिवर्त कितने प्रकार के कहे गये हैं ? [16 उ.] गौतम ! (नैरयिक जीवों के भी) सात प्रकार के पुद्गल-परिवर्त्त कहे गए हैं / यथा- औदारिकपुद्गल-परिवर्त्त, वैक्रियपुद्गल-परिवर्त यावत् प्रान-प्राणपुद्गल-परिवर्त्त / 17. एवं जाव वेमाणियाणं / [17] इसी प्रकार (असुर कुमार से लेकर) यावत् वैमानिक (दण्डक) तक कहना चाहिए / विवेचन-पुदगलपरिवर्त : क्या, कैसे और कितने प्रकार के ?-पुद्गल द्रव्यों के साथ परमाणुनों का मिलन पुद्गल-परिवर्त्त है। ये पुद्गल-परिवर्त्त संघात (संयोग) और भेद (विभाग) के योग से अनन्तानन्त होते हैं / अनन्त को अनन्त से गुणा करने पर जितने होते हैं, वे अनन्तानन्त कहलाते हैं। एक ही परमाण' अनन्ताणकान्त चणकादि द्रव्यों के साथ संयुक्त होने पर अनन्तपरिवत्र्तों को प्राप्त करता है। प्रत्येक परमाण रूप द्रव्य में परिवर्त्त होता है और परमाण अनन्त हैं। इस प्रकार प्रत्येक परमाणु में अनन्त परिवर्त्त होते हैं। इसलिए परमाणु-पुद्गल-परिवर्त अनन्तानन्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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