________________ बारहवां शतक : उद्देशक 4] [159 19. एवं सत्त दंडगा जाव आणपाणु ति / [19] इसी प्रकार (वैत्रिय-पुद्गल-परिवर्त से लेकर) यावत्-आन-प्राण, (श्वासोच्छ्वास पुद्गल-परिवर्त तक) सात अालापक (दण्डक) कहने चाहिए / 20. [1] एगमेगस्स गं भंते ! नेर इयरस केवतिया ओरालियपोग्गलपरियट्टा अतीया ? अणंता। [20-1 प्र.] भगवन् ! प्रत्येक नै रयिक के प्रतीत प्रौदारिक पुद्गलपरिवर्त कितने हैं ? [20-1 उ.] गौतम ! (वे) अनन्त हैं / [2] केवतिया पुरेक्खडा? कस्सइ अस्थि, कस्सइ नस्थि / जस्सऽस्थि जहन्ने णं एक्को वा दो वा तिणि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा। [19-2 प्र.] भगवन् (प्रत्येक नरयिक के) भविष्यत्कालीन (पुद्गलपरिवत्त) कितने होंगे? [20-1 उ.] गौतम ! (भविष्यत्कालिक पुद्गल-परिवर्तन) किसी (नरयिक) के होंगे, किसी के नहीं होंगे। जिस (नैरयिक) के होंगे, उसके जघन्य एक, दो (या) तीन होंगे और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात या अनन्त होंगे। 21. एगमेगस्स णं भंते ! असुरकुमारस्स केवतिया ओरालियपोग्गलपरियट्टा ? एवं चेय / [21 प्र. भगवन् ! प्रत्येक असुरकुमार के प्रतीतकालिक कितने प्रौदारिक पुद्गल-परिवर्त [21 उ.] गौतम ! इसी प्रकार (पूर्वोक्तवत्) जानना चाहिए। 22. एवं जाव वेमाणियस्स / [22] इसी प्रकार (नागकुमार से लेकर) यावत् वैमानिक (के अतीत पुद्गलपरिवर्त) तक (पूर्ववत् कथन करना चाचुिए / ) 23. [1] एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स केवतिया वेउवियपुग्गलपरियट्टा अतीया ? अणंता। [23.1 प्र.] भगवन् ! प्रत्येक नारक के भूतकालीन वैक्रिय-पुद्गल-परिवतं कितने हुए है ? [23-2 उ.] गौतम ! (वे भी) अनन्त हुए हैं / [2] एवं जहेव मोरालियपोग्गलपरियट्टा तहेब वे उब्वियपोग्गलपरियट्टा वि भाणियन्वा / [23-2] जिस प्रकार औदारिक पुद्गल-परिवर्त के विषय में कहा, उसी प्रकार वैक्रियपुद्गल-परिवर्त्त के विषय में कहना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org