________________ बारहवां शतक : उद्देशक 2] कर्मगुरुत्व-लघुत्व सम्बन्धी जयन्ती प्रश्न और भगवत्समाधान 14. तए णं सा जयंती समणोवासिया समगस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठा समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, बं० 2 एवं वयासी-कहं गं भंते ! जीवा गरुयत्तं हव्वमागच्छंति ? जयंती! पाणातिवातेणं जाव मिच्छादसणसल्लेणं, एवं खलु जीवा गरुयत्तं हवमागच्छति / एवं जहा पढमसते (स० 1 उ० 9 सु. 1-3)' जाव वीतीवयंति / [14 प्र.] तदनन्त र वह जयन्ती श्रमणोपासिका श्रमण भगवान महावीर से धर्मोपदेश श्रवण कर एवं अवधारण करके हर्षित एवं सन्तुष्ट हुई। फिर भगवान् महाबीर को वन्दना- नमस्कार करके इस प्रकार पूछा-भगवन् ! जीव किस कारण से शीघ्र गुरुत्व को प्राप्त होते हैं ? [14 1.] जयन्ती ! जीव प्राणातिपात से लेकर मिथ्यादर्शनशल्य तक अठारह पापस्थानों के सेवन से शीघ्रगुरुत्व को प्राप्त होते हैं, (और इनसे निवृत्त होकर जीव हलके होते हैं, इत्यादि सब) प्रथमशतक (उ. 9, सू. 1-3 में कहे) अनुसार, यावत् संसारसमुद्र से पार हो जाते हैं, (यहाँ तक कहना चाहिए।) विवेचन-जीव को गुरुत्व और लघुत्व प्राप्त होने के कारण-जयन्ती श्रमणोपासिका ने साक्षात् भगवान् से यह प्रश्न किया कि जीव किस कारण से गुरुत्व या लघुत्व को प्राप्त होते हैं ? भगवान् ने अर्थगम्भीरसीमित शब्दों में उत्तर दिया-अठारह पापस्थानों के सेवन और उनसे निवृत्त होने से जीव क्रमश: गुरुत्व और लघुत्व को प्राप्त होते है / गुरुत्व और लघुत्व यहाँ कर्म की अपेक्षा से समझना चाहिए ! भवसिद्धिक जीवों के विषय में परिचर्चा 15. भवसिद्धियत्तणं भते ! जीवाणं कि सभावओ, परिणामओ? जयंती! सभावओ, नो परिणामओ। [15 प्र.] भगवन् ! जीवों का भवसिद्धिकत्व स्वाभाविक है या पारिणामिक ? [15 उ.] जयन्ती ! वह स्वाभाविक है, पारिणामिक नहीं / 16. सम्वे विणं भंते ! भवसिद्धीया जीवा सिन्झिस्संति ? हंता, जयंती ! सब्वे वि णं भवसिद्धीया जीवा सिज्झिस्संति / [16 प्र.] भगवन् ! क्या सभी भवसिद्धिक जीव सिद्ध हो जाएँगे ? [16 उ.] हाँ, जयन्ती ! सभी भवसिद्धिक जीव सिद्ध हो जाएँगे। --- - --- - 1. जहां 'जाव' शब्द-(एवं) प्राकुलीकरेंति, एवं परित्तीकरेंति, एवं दोहीकरेंति, एवं हस्सोकरेंति एवं अण परियति // ' इत्यादि पाठ का सूचक है।-भग. श. 1, उ. 9, सू. 1, 3 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org