________________ 130] [थ्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र समवसरण में बैठी और उसके पीछे स्थित होकर पर्युपासना करने लगी (इत्यादि सब वर्णन श. 6 उ. 33 सू. 12 के समान) कहना / 13. तए णं समणे भगवं महावीरे उदयणस्स रणो मियावतीए देवीए जयंतीए समणोवासियाए तीसे य महतिमहा० जाव धम्म परिकहेति जाव परिसा पडिगता, उदयणे पडिगए, मियावती वि पडिगया। [13] तदनन्तर श्रमण भगवान महावीर ने, उदयन राजा, मृगावती देवी, जयन्ती श्रमणोपासिका और उस महती महापरिषद् को यावत् धर्मोपदेश दिया, (धर्मोपदेश सुन कर) यावत् परिषद लौट गई, उदयन राजा और मृगावती रानी भी चले गए। विवेचन-जयन्ती श्रमणोपासिका : भगवान महावीर की सेवा में--प्रस्तुत नौ सूत्रों में (सू. 5 से 13 तक) भगवान् महावीर के कौशाम्बी में पदार्पण से लेकर जयन्ती श्रमणोपासिका आदि के द्वारा उनकी पर्युपासना करने तथा भगवान् के धर्मोपदेश को सुन कर जयन्ती श्रमणोपासिका के सिवाय सबके वापिस लौट जाने तक का वर्णन है। सात तथ्यों का उद्घाटन--इस समग्र वर्णन पर से सात तथ्यों का उद्घाटन होता है(१) कौशाम्बी को श्रमणोपासक-श्रमणोपासिकाओं को धर्मनगरी जान कर भगवान का विशेष (2) भगवान का आगमन सन कर परिषद का उमडना. (3) तत्कालीन धर्मप्रिय कौशाम्बीनरेश उदयन द्वारा स्वकर्तव्यपालन-नगर की सफाई एवं सजावट का आदेश, भगवान के पदार्पण की घोषणा और कोणिक नप के समान ठाठबाट से स्वयं भगवान् की सेवा में पहुँच कर पर्युपासना में लीन हो जाना आदि / (4) जयन्ती श्रमणोपासिका द्वारा भगवान के दर्शन, वंदन, प्रवचन-श्रवण और पर्युपासना के लिए रानी मृगावती को तैयार करना, (5) मृगावती देवी द्वारा भी जयन्ती श्रमणोपासिका को साथ लेकर धार्मिक रथ पर चढ़कर देवानन्दा के समान भगवान् की सेवा में पहुँचना / (6) समवसरण में उदयन नृप को आगे करके बैठना और पर्युपासना करना, (7) भगवान् का धर्मोपदेश सुनकर जयन्ती श्रमणोपासिका के अतिरिक्त सबका वापिस लौट जाना।' ___ 'कौटुम्बिक' शब्द का रहस्यार्थ देशीशब्दसंग्रह के द्वितीय वर्ग की द्वितीय गाथा में कोडुब (कौटुम्ब) शब्द को कार्यवाचक बताया है, इस दृष्टि से 'कोड बिया' का अर्थ इस प्रकार होता है-- जो कोडुब अर्थात् कार्य को करते हैं, वे कोडुबिय (कौटुम्विक-कार्यकर) पुरुष कहलाते हैं। ग्रागमों में यत्र-तत्र प्रयुक्त 'कोडु बियपुरिस' का यही अर्थ समझना चाहिए। कठिन शब्दार्थ-उबढाणसाला-प्रास्थानमण्डप, सभास्थान / पडिसुणेति--स्वीकार किया। णियग-परियाल—अपने सगे सम्बन्धी तथा राजपरिवार (की महिलाएँ) / 'लहुकरण-जुत्त-जोइय० 3-- फुर्तीले वेगवान् घोड़ों से जुता हुआ / 1, वियाहपण्णत्तिसुत्त (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) पृ. 567-568 2. 'कोडुबं कार्यं कुर्वन्तीति कोड विया, कोड बियपुरिसे-कार्यकरपुरुषान् / ' –वियाह. (मू. पा. टि.) पृ. 568 3. (क) भगवतीसूत्र (हिन्दी विवेचन) भा. 4 पृ. 1988-1989 (ख) पाइप्रसद्दमहष्णवो पृ. 175, 562 (ग) भगवती. तृतीय खण्ड (गुजरात विद्यापीठ) पृ. 258 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org