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________________ 122] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र गोयमा ! जे इमे अरहंता भगवंतो उत्पन्ननाण-दसणधरा जहा खंदए (स०२ उ०१ सु० 11) जाव सवण्णू सवदरिसी,' एए गं बुद्धा बुद्धजागरियं जागरंति / जे इमे अणगारा भगवंतो इरियासमिता भासासमिता जाव गुत्तबंभचारी, एए णं अबुद्धा अबुद्धजागरियं जागरंति / जे इमे समणोवासगा अभिगयजीवाजीवा जाव विहरंति एते णं सुदक्खुजागरियं जागरंति / से तेणटुण गोयमा ! एवं बुच्चति 'तिविहा जागरिया जाव सुदक्खुजागरिया' / [25-2 प्र.] भगवन् ! किस हेतु से कहा जाता है कि जारिका तीन प्रकार की है, जैसे कि-बुद्ध-जागरिका, अबुद्ध-जागरिका और सुदर्शन-जागरिका ? 25-2 उ.] हे गौतम ! जो उत्पन्न हुए केवलज्ञान-केवलदर्शन के धारक अरिहन्त भगवान हैं, इत्यादि (शतक 2 उ. 1 सू. 11 में उक्त) स्कन्दक-प्रकरण के अनुसार जो यावत् सर्वज्ञ, सर्वदर्शी हैं, वे बुद्ध हैं, वे बुद्धजागरिका (जागृत) करते हैं, जो ये अनगार भगवन्त ईर्यासमिति, भाषासमिति आदि पांच समितियों और तीन गुप्तियों से युक्त यावत् गुप्त ब्रह्मचारी हैं, वे अबुद्ध (अल्पज्ञ-छद्मस्थ) हैं / वे प्रबुद्धजागरिका (जागृत) करते हैं। जो ये श्रमणोपासक, जीव-अजीव प्रादि तत्त्वों के ज्ञाता यावत् पौषधादि करते हैं, वे सुदर्शनाजागरिका (जागृत) करते हैं। इसी कारण से, हे गौतम ! तीन प्रकार की जागरिका यावत् सुदर्शनाजागरिका कही गई है। विवेचन—त्रिविध जागरिका- प्रस्तुत सत्र (25) में गौतम स्वामी और भगवान महावीर के प्रश्नोत्तर के रूप में त्रिविध जागरिका का स्वरूप बताया गया है। बुद्धजागरिका केवलज्ञान-केवलदर्शन रूप अवबोध के कारण जो बुद्ध हैं, उन अज्ञान-निद्रा अादि प्रमाद से रहित बुद्धों को जागरिका अर्थात्-प्रबोध, बुद्धजागरिका कहलाती है। अबुद्धजागरिका-जो केवलज्ञान के अभाव में बुद्ध तो नहीं हैं किन्तु यथासम्भव शेष ज्ञानों के सद्भाव के कारण बुद्ध सदृश-प्रबुद्ध हैं, उन छद्मस्थ ज्ञानवान् प्रबुद्धों की जागरणा अबुद्धजारका कहलाती है। सुदर्शनाजागरिका-जीवाजीवादितत्त्वज्ञ जो सम्यग्दष्टि श्रमणोपासक पौषध आदि में प्रमाद निद्रा आदि से रहित होकर धर्मजागरणा करते हैं, उनकी वह जागरणा सुदर्शना जागरिका कहलाती है। शंख द्वारा क्रोधादि-परिणामविषयक प्रश्न और भगवान् द्वारा उत्तर 26. तए णं से संखे समणोवासए समणं भगवं महावीरं वंदति नमसति, वंदित्ता 2 एवं क्यासो-कोहवसट्टणं भंते ! जीवे कि बंधति ? किं पक रेति ? किं चिणाति ? किं उचिणाति ? 1. जाव शब्द यहां ........."अरहा जिणे केवली' ग्रादि पाठ का सूचक है। भगवती. (जि. प्र. स. ब्यावर) खण्ड 1 2. भगवती. अभय. वृत्ति, पत्र 555-556 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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