________________ ग्यारहवां शतक : उद्देशक-१२ ]. पदार्पण, (2) पदार्पण सुन कर असन्तुष्ट श्रमणोपासकों द्वारा भगवदुपासना एवं (3) भगवान् द्वारा धर्मोपदेश प्रदान से वे सन्तुष्ट, श्रद्धावान् एवं प्राज्ञाराधक / ' 9. तए णं ते समणोवासया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ० उडाए उट्ठति, उ० 2 समणं भगवं महावीरं वंदंति नमसंति, वं० 2 वदासी--एवं खलु भंते ! इसिभद्दपुत्ते समणोवासए अम्हं एवं आइक्खति जाव परूवेति- देवलोएसु णं अज्जो! देवाणं जहन्नणं दसवाससहस्साई ठिती पन्नत्ता, तेण परं समयाहिया जाव तेण परं वोच्छिन्ना देवा य देवलोगा य / से कहमेतं भंते ! एवं? [6] तत्पश्चात् वे श्रमणोपासक श्रमण भगवान महावीर के पास से धर्म---(धर्मोपदेश) श्रवण कर एवं अवधारण करके हृष्ट-तुष्ट हुए। फिर वे स्वयं उठे और खड़े होकर उन्होंने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन-नमस्कार किया और इस प्रकार पूछा----- प्र.] भगवन् ! ऋषिभद्रपुत्र श्रमणोपासक ने हमें इस प्रकार कहा, यावत् प्ररूपणा कीहे आर्यो ! देवलोकों में देवों की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष कही गई है / उसके आगे एक-एक समय अधिक यावत् (पूर्ववत्) उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम की कही गई है, यावत् इसके बाद देव और देवलोक विच्छिन्न हैं, नहीं हैं / तो क्या भगवन् ! यह बात ऐसी ही है ? 10. 'अज्जो !' ति समणे भगवं महावीरे ते समणोवासए एवं वयासी-जं णं अज्जो ! इसिभद्दपुत्ते समणोवासए तुब्भं एवं भाइरखइ जाव परूवेइ–देवलोगेसु णं अज्जो ! देवाणं जहन्न णं इस वाससहस्साई ठिई पग्णता तेण परं समयाहिया जाव तेण परं वोच्छिन्ना देवा य देवलोगा य / सच्चे णं एसम? / अहं पिणं अज्जो ! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि-देवलोगेसु णं अज्जो ! देवाणं जहन्ने णं दस वाससहस्साइं० तं चेव जाव वोच्छिन्ना देवा य देवलोगा य / सच्चे णं एसमट्ठ। [10 उ.] पार्यो ! इस प्रकार का सम्बोधन करते हुए श्रमण भगवान् महावीर ने उन श्रमणोपासकों को तथा उस बड़ी (विशाल) परिषद् को इस प्रकार कहा-हे पार्यो ! ऋषिभद्रपुत्र श्रमणोपासक ने जो तुमसे इस प्रकार (पूर्वोक्त) कहा था, यावत् प्ररूपणा की थी कि देवलोकों में देवों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की है, उसके आगे एक समय अधिक, यावत् उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम की है, यावत् इसके आगे देव और देवलोक विच्छिन्न हैं यह अर्थ (बात) सत्य है / हे पार्यो ! मैं भी इसी प्रकार कहता हूँ, यावत् प्ररूपणा करता हूँ कि देवलोकों में देवों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की है. यावत उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागारोपम को है, यावत इससे आगे देव और देवलोक विच्छिन्न हो जाते हैं / आर्यो! यह बात सर्वथा सत्य है। 11. तए णं ते समणोवासगा समणस्स भगवो महावीरस्स अंतियं एयमझें सोच्चा निसम्म समणं भगवं महावीरं वदति नमसंति, वं० 2 जेणेव इसिभद्दपुत्ते समणोवासए तेणेव उपागच्छति, उवा० 2 इसिभद्दपुत्तं समणोवासगं वदति नमसंति, बं० 2 एयम→ सम्मं विणएणं भुज्जो भुज्जो खामेति / 1. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूल पाठ-टिप्पण), भा. 2. पृ. 55.5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org