________________ बारसमो उद्देसओ : बारहवाँ उद्देशक पालभिया : पालभिका (नगरी में प्ररूपणा) पालभिका नगरी के श्रमणोपासकों को देवस्थितिविषयक जिज्ञासा एवं ऋषिभद्र के उत्तर के प्रति श्रद्धा 1. तेणं कालेणं तेणं समएणं आलभिया नाम नगरी होत्था। वण्णओ। संखवणे चेतिए / वग्णओ। [1] उस काल और उस समय में प्रालभिका नाम की नगरी थी। उसका वर्णन करना चाहिए / वहाँ शंखवन नामक उद्यान था। उसका वर्णन भी करना चाहिए / 2. तत्थ णं आलभियाए नगरीए बहवे इसिभद्दपुत्तपामोषखा समणोवासया परिवसंति अड्डा जाव अपरिभूता अभिगयजीवाजीवा जाव विहरंति / [2] उस पालभिका नगरी में ऋषिभद्रपुत्र वगैरह बहुत-से श्रमणोपासक रहते थे / वे पाढ्य यावत् अपरिभूत थे, जीव और अजीव (आदि तत्त्वों) के ज्ञाता थे, यावत् विचरण (जीवनयापन) करते थे। 3. तए म तेसि समणोवासयाणं अन्नया कयाइ एगयनो समुवागयाणं सहियाणं समुपविट्ठाणं सन्निसन्नाणं अयमेयारवे मिहो कहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था-देवलोगेसु णं अज्जो ! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णता? [3] उस समय एक दिन एक स्थान पर पाकर एक साथ एकत्रित होकर बैठे हुए उन श्रमणोपासकों में परस्पर इस प्रकार का वार्तालाप (धर्मचर्चा) हुआ—[प्र. हे आर्यों ! देवलोकों में देवों को स्थिति, कितने काल की कही गई है ? / 4. तए णं से इसिभद्दपुत्ते समणोवासए देवद्वितिगहिय? ते समणोवासए एवं वयासी-. देवलोगेसु णं अज्जो ! देवाणं जहन्नणं दस बाससहस्साई ठिती पण्णता, तेण परं समयाहिया दुसमयाहिया तिसमयाहिया जाव दससमयाहिया संखेज्जसमयाहिया असंखेज्जसमयाहिया; उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ठितो पन्नत्ता / तेण परं वोच्छिन्ना देवा य देवलोगा य। [4] (उ.) इस प्रश्न को सुनने के पश्चात् देवों की स्थिति के विषय में ज्ञाता (गहीतार्थ) ऋषिभद्रपुत्र श्रमणोपासक, उन श्रमणोपासकों से इस प्रकार बोला-पार्यो ! देवलोकों में देवों की न्य स्थिति दस हजार वर्ष की कही गई है, उसके उपरान्त एक समय अधिक, दो समय अधिक. यावत् दस समय अधिक, संख्यात समय अधिक और असंख्यात समय अधिक, (इस प्रकार बढ़ते हुए) उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की स्थिति कही गई है / इसके उपरान्त अधिक स्थिति वाले देव और देवलोक नहीं हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org