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________________ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र उ. 6, सू. 7-6 में) शिवभद्र के राज्याभिषेक का वर्णन है, उसी प्रकार यहाँ भी महाबल कुमार के 'राज्याभिषेक का वर्णन समझ लेना चाहिए, यावत् महाबल का राज्याभिषेक किया, फिर हाथ जोड़ कर महाबल कुमार को जय-विजय शब्दों से बधाया; तथा इस प्रकार कहा-हे पुत्र ! कहो, हम तुम्हें क्या देखें ? तुम्हारे लिए हम क्या करें? इत्यादि वर्णन (श. 6, उ. 33, सू. 46-82 में कथित) जमालि के समान जानना चाहिए; यावत् महाबल कुमार ने धर्मघोष अनगार से प्रव्रज्या ग्रहण कर ली। विवेचन---प्रस्तुत तीन सूत्रों (55.57) में निम्नलिखित तथ्यों का अतिदेशपूर्वक वर्णन किया गया है-(१) धर्मघोष अनगार का हस्तिनापुर में पदार्पण, (2) महाबल कुमार को धर्मोपदेश सुनकर वैराग्य होना, (3) माता-पिता से दीक्षा की अनुमति मांगने पर परस्पर उत्तर-प्रत्युत्तर और अन्त में निरुत्तर-निरुपाय होकर अनिच्छा से अनुमति प्रदान करना, (4) एक दिन के राज्य ग्रहण करने की माता-पिता की इच्छा को स्वीकार करना, (5) दीक्षा महोत्सव एवं (6) धर्मघोष अनगार से विधिवत् भागवती दीक्षा ग्रहण करना / महाबल अनगार का अध्ययन, तपश्चरण, समाधिमरण एवं स्वर्गलोकप्राप्ति 58. तए णं से महब्बले अणगारे धम्मघोसस्स अणगारस्स अंतियं सामाइयमाइयाई चोद्दस पुवाई अहिज्जति, अहिज्जित्ता बहूहि चउत्थ जाव विचित्तेहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे बहुपडिपुण्णाई दुवालस वासाइं सामण्णपरियागं पाउणति, बह० पा०२ मासियाए संलेहणाए सट्रि भत्ताई अणसणाए. आलोइययडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा उड्ड चंदिमसूरिय जहा अम्मडो जाव' बंभलोए कप्पे देवत्ताए उववन्ने / तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं दस सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता। तत्थ णं महब्बलस्स वि देवस्स दस सागरोवमाइंठिती पन्नता। (58) दीक्षाग्रहण के पश्चात् महाबल अनगार ने धर्मघोष अनगार के पास सामायिक आदि चौदह पूर्वो का अध्ययन किया तथा उपवास (चतुर्थभक्त), बेला (छ8), तेला (अट्ठम) आदि बहुत-से कर्मों से आत्मा को भावित करते हए परे बारह वर्ष तक श्रमणपर्याय का पालन किया और अन्त में मासिक संलेखनासे साठ भक्त अनशन द्वारा छेदन कर आलोचना-प्रतिक्रमण कर समाधि काल के अवसर पर काल करके ऊर्बलोक में चन्द्र और सूर्य से भी ऊपर बहुत दूर, अम्बड़ के समान यावत् ब्रह्मलोककल्प में देवरूप में उत्पन्न हुए। वहाँ कितने ही देवों की दस सागरोपम की स्थिति कही गई है / तदनुसार महाबलदेव की भी दस सागरोपम की स्थिति कही गई है। विवेचन--दीक्षाग्रहण से समाधिमरण एवं ब्रह्मलोककल्प में उत्पत्ति-प्रस्तुत 58 वें सूत्र में महाबल अनगार के जीवन का संकेत किया गया है। दीक्षाग्रहण के बाद चौदह पूर्वो का अध्ययन, विविध तपश्चर्या से कर्मक्षय, अन्त में यहाँ से मासिक सलेखना, तथा अनशन करके समाधिपूर्वक मरण और ब्रह्मदेवलोक की प्राप्ति, यह क्रम अनगार धर्म की आराधना के उज्ज्वल भविष्य को सूचित करता है। 1. जाव पद-सूचित पाठ-गहगण-नक्षत्त-तारारूवाणं बहुइं जोयणाई बहूई जोयणसयाई बहूइंजोयणसहस्साई बहूई जोयणसयसहस्साई बहईओ जोयणकोडाकोडीओ उडढं दूरं उप्पइत्ता सोहम्मीसाण-तणकुमार-माहिदे कप्पे वीईवइत्त ति। --ौप. सू. 40, प. 10 ।नागमो.) 2. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण) भा, 2, पृ. 553 ... ---------..--.--- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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