________________ ग्यारहवां शतक : उद्देशक-११] [95 महाबलकुमार द्वारा प्रवज्याग्रहरण 55. तए णं तस्स महरूबलस्स कुमारस्तं तं मह्या जणसई वा जगवूहं वा एवं जहा जमालो (स० 9 उ० 33 सु० 24-25) तहेव चिता, तहेव कंचुइज्जपुरिसं सहावेइ, कंजुइज्जपुरिसे वि तहेव अक्खाति, नवरं धम्मघोसस्स अणगारस्स आगमणगहियविणिच्छए करयल जाव निग्गच्छति / एवं खलु देवाणुपिया! विमलस्स अरहतो पउप्पए धम्मघोसे नामं अणगारे सेसं तं चेव जाव सोवि तहेव रहवरेणं निग्गच्छति / धम्मकहा जहा केसिसामिस्स / सो वि तहेव (स० 9 उ० 33 सु० 33) अम्मापियरं आपुच्छति, नवरं धम्मघोसस्स अणगारस्स अंतियं मुंडे भवित्ता अगारातो अणगारियं पवइत्तए तहेव वृत्तपडिवुत्तिया (स० 9 उ० 33 सु. 35.45) नवरं इमाओ य ते जाया ! बिउलरायकुलबालियाओ कला० सेसं तं चैव जाव ताहे अकामाई चेव महब्बलकुमारं एवं बदासीतं इच्छामो ते जाया ! एगदिवसमवि रज्जसिरिं पासित्तए / _ [55] (धर्मघोषमुनि के दर्शनार्थ जाते हुए) बहुत-से मनुष्यों का कोलाहल एवं चर्चा सुनकर (श. 6 उ. 33 सू. 24-25 में उल्लिखित) जमालिकुमार के समान महाबल कुमार को भी विचार हुआ / उसने अपने कंचुकी पुरुष को बुलाकर (उसी प्रकार इसका कारण पूछा। कंचुकी पुरुष ने भी (पूर्ववत्) हाथ जोड़ कर महाबल कुमार से निवेदन किया-देवानुप्रिय ! विमलनाथ तीर्थकर के प्रपौत्र शिष्य श्री धर्मघोष अनगार यहाँ पधारे हैं। इत्यादि सब वर्णन पूर्ववत कहना चाहिए यावत महाबल कुमार भी जमालि कुमार की तरह (पूर्ववत्) उत्तम रथ पर बैठ कर उन्हें वन्दना करने गया / धर्मघोष अनगार ने भी केशीस्वामी के समान धर्मोपदेश (धर्मकथा) दिया / सुनकर महाबल कुमार को भी (श. 6, उ. 33, सू. 35-45 में कथित वर्णन के अनुसार) जमालि कुमार के समान वैराग्य उत्पन्न हुा / घर आकर उसी प्रकार (जमालि कुमार की तरह) माता-पिता से अनगार धर्म में प्रवजित होने की अनुमति मांगी। विशेष यह है कि (हे माता-पिता ! ) धर्मघोष अनगार से मैं मुण्डित होकर आगारवास (गृहवास) से अनगार धर्म में प्रजित होना चाहता हूँ / (श. 6, उ. 33, सू. 35-45 में लिखित) जमालि कुमार के समान महाबल कुमार और उसके माता-पिता में उत्तर-प्रत्युत्तर हुए। विशेष यह है कि माता-पिता ने महाबल कुमार से कहा--हे पुत्र! यह विपुल धन और उत्तम राजकुल में उत्पन्न हुई कलाकुशल पाठ कुलबालाएँ छोड़कर तुम क्यों दीक्षा ले रहे हो ? इत्यादि शेष वर्णन पूर्ववत् है यावत् माता-पिता ने अनिच्छापूर्वक महाबल कुमार से इस प्रकार कहा--"हे पुत्र ! हम एक दिन के लिए भी तुम्हारी राज्यश्री (राजा के रूप में तुम्हें) देखना चाहते हैं।" 56. तए णं से महब्बले कुमारे अम्मा-पिउवयणमणुयत्तमाणे तुसिणीए संचिट्ठा। [56] माता-पिता की इस बात को सुन कर महाबल कुमार चुप रहे / 57. तए णं से बले राया कोडुबियपुरिसे सहावेइ, एवं जहा सिवभहस्स (स० 11 उ० 9 सु०७-९) तहेव रायाभिसेओ भाणितब्बो जाव अभिसिचंति, अभिसिचित्ता करतलपरि० महब्बलं कुमार जएणं विजएणं वद्धाति, जएणं विजएणं वद्धावित्ता एवं वयासी-मण जाया ! कि देमो? कि पयच्छामो ? सेसं जहा जमालिस्स तहेब, जाव (स० 9 उ० 33 सु० 49-82) [57] इसके पश्चात् बल राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और जिस प्रकार (श. 11, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org