________________ म्यारहवां शतक : उद्देशक-११] उत्तम दास, एवं पाठ उत्तम दासियाँ, पाठ उत्तम किंकर, पाठ उत्तम कंचुकी (द्वाररक्षक), पाठ वर्षधर (अन्तःपूर रक्षक, खोजा), पाठ महत्तरक (अन्तःपुर के कार्य का विचार करने वाले), पाठ सोने के, आठ चांदी के और पाठ सोने-चांदी के अवलम्बन दीपक (लटकने वाले दीपक-हंडे), पाठ सोने के, पाठ चांदी के और पाठ सोने-चांदो के उत्कंचन दीपक (दण्डयुक्त दीपक-मशाल), इसी प्रकार सोना, चांदी और सोना-चांदी, इन तीनों प्रकार के आठ पंजरदोपक, सोना, चांदी और सोने-चांदी के आठ थाल, आठ थालियां, आठ स्थासक (तश्तरियाँ), पाठ मल्लक (कटोरे), आठ तलिका (रकाबियाँ), आठ कलाचिका (चम्मच), पाठ तापिकाहस्तक (संडासियाँ), पाठ तवे, अाठ पादपीट (बाजोट), पाठ भीषिका (प्रासन-विशेष), आठ करोटिका (लोटा), आठ पलंग, पाठ प्रतिशय्याएँ (छोटे पलंग), आठ हंसासन, आठ क्रौंचासन, पाठ गरुड़ासन, आठ उन्नतासन, आठ अवनतासन, आठ दोर्षासन, पाठ भद्रासन, पाठ पक्षासन, पाठ मकरासन, पाठ पद्मासन, पाठ दिकस्वस्तिकासन, प्राट तेल के डिब्बे, इत्यादि सब राजप्रश्नीयसूत्र के अनुसार जानना चाहिए; यावत् पाठ सर्षप के डिब्बे, आठ कुब्जा दासियाँ आदि सभी औपपातिक सूत्र के अनुसार जानना चाहिए; यावत् पाठ पारस देश की दासियाँ, आठ छत्र, आठ छत्रधारिणी दासियाँ, पाठ चामर, आठ चामरधारिणी दासियाँ, पाठ पंखे, पाठ पंखाधारिणी दासियाँ, आठ करोटिका (ताम्बूल के करोटिकाधारिणी दासियों, पाठ क्षीरधात्रियों, यावत पाठ अंकधात्रियां, आठ अंगमदिका (हलका मालिश करने वाली दासियाँ), पाठ उन्मदिका (अधिक मर्दन करने वाली दासियाँ), आठ स्नान कराने वाली दासियाँ, पाठ अलंकार पहनाने वाली दासियों, आठ चन्दन घिसने वाली दासियाँ, आठ ताम्बूल चूर्ण पोसने वाली, अाठ कोष्ठागार की रक्षा करने वाली, पाठ परिहास करने वाली, आठ सभा में पास रहने वाली, पाठ नाटक करने वाली, आठ कौटुम्बिक (साथ रहने वाली सेविकाएँ), आठ रसोई बनाने वाली, पाठ भण्डार की रक्षा करने वाली, आठ तरुणियाँ, आठ पूष्प धारण करने वाली (मालिन), आठ पानी भरने वाली, पाठ वलि करने वाली, पाठ शय्या बिछाने वाली, पाठ प्राभ्यन्तर और बाह्य प्रतिहारियाँ, आठ माला बनाने वाली और आठ-आठ आटा यादि पीसने वाली दासियाँ दीं। इसके अतिरिक्त बहुत-साहिरण्य, सुवर्ण, कांस्य, वस्त्र एवं विपुल धन, कनक, यावत सारभूत द्रव्य दिया / जो सात कूल वंशों (पीढ़ियों) तक इच्छापूर्वक दान देने, उपभोग करने और बांटने के लिए पर्याप्त था। 51. तए णं से महब्बले कुमारे एगमेगाए भज्जाए एगमेगं हिरण्णकोडि दलयति, एगमेगं सुवण्णकोडि दलयति, एगमेगं मउड पउडप्पवरं दलयति, एवं तं चेव सव्वं जाब एगमेगं पेसणकारि दलयति, अन्नं वा सुबहुं हिरण्णं वा जाव परियाभाएउं / [51] इसी प्रकार महावल कुमार ने भी प्रत्येक भार्या (पत्नी) को एक-एक हिरण्यकोटि, एक-एक स्वर्णकोटि, एक-एक उत्तम मुकुट, इत्यादि पूर्वोक्त सभी वस्तुएँ दी यावत् सभी को एक-एक पेषणकारी (पीसने वाली) दासी दी तथा बहुत-सा हिरण्य, सुवर्ण ग्रादि दिया, जो यावत् विभाजन करने के लिए पर्याप्त था। 52. तए णं से महब्बले कुमारे उप्पि पासायवरगए जहा जमाली (स० 9 उ० 33 सु० 22) जाब विहरति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org