________________ ग्यारहवां शतक : उद्देशक-११] [91 महाजल कुमार के माता-पिता ने समान जोड़ी वाली, समान त्वचा वाली, समान उम्र की, समान रूप, लावण्य, यौवन एवं गुणों से युक्त विनीत एवं कौतुक तथा मंगलोपचार की हुई तथा शान्तिकर्म की हुई और समान राजकुलों से लाई हुई आठ श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ एक ही दिन में (महाबल कुमार का) पाणिग्रहण करवाया। विवेचन–महाबल कुमार का पाणिग्रहण-उस युग के रीति-रिवाज एवं मंगलकार्य करने की प्रथा के अनुसार शुभ मुहर्त में माता-पिता ने समान जोड़ी की आठ राजकन्याओं के साथ विवाह कराया, जिसका वर्णन 46 वे सूत्र में है / 34 कठिन शब्दों का भावार्थ पमक्खणग-प्रमक्षणक-अभ्यंगन / पसाहण—मंडन / अटुंगतिलगआठ अंगों पर तिलक-छापे। कंकण---लाल डोरे (मौली) को हाथ में बांधना / अविहव-बहु--- सधवा वधुओं द्वारा। उवणीयं-नेगचार किये गए या रीति-रिवाज पूरे किये गए। मंगल. सुपितेहि-मंगल अर्थात्-दही-अक्षत आदि अथवा मंगलगीतविशेष से सौभाग्यवती नारियों द्वारा उच्चारण किये गए आशीर्वचन / बरकोउय-मंगलोक्यारकयसंतिकम्म श्रेष्ठ कौतुक एवं मंगलोपचारों से शान्तिकर्म (पापोपशमनक्रिया) किया / ' बल राजा तथा महाबल कुमार की ओर से नववधुओं को प्रीतिदान 50. तए णं तस्स महब्बलस्स कुमारस्स अम्मा-पियरो अयमेयारूवं पीतिदाणं दलयंति, तं जहा— अट्ठ हिरणकोडोओ, अट्ट सुवण्णकोडोओ, अट्ठ मउडे मउडप्पवरे, अट्टकुडलजोए कुडल. जोयप्पवरे, अट्ट हारे हारप्पवरे, अट्ठ अद्धहारे श्रद्धहारप्पवरे, अट्ट एगावलौनो एगावलिप्पवरामओ, एवं मुत्तावलीओ, एवं कणगावलीप्रो, एवं रयणावलीओ, अट्ट कडगजोए कडगजोयप्पवरे, एवं तुड़ियजोए, अटु खोमजुयलाई खोमजुयलप्पवराई, एवं वडगजुयलाइं, एवं पट्टजुयलाई, एवं दुगुल्लजुयलाई, अट्ठ सिरीअो अट्ठ हिरोयो, एवं धितोओ, कित्तीओ, बुद्धीओ, लच्छीओ; अट्ठ नंदाई, अट्ठ भद्दाई, अट्ठ तले तलप्पवरे सम्बरयणामए गियगवरभवणकेऊ, अट्ट झए शयपवरे, अटु वए वयप्पवरे दसगोसाहस्सिएणं वएणं, अट्ठ नाडगाई नाडगप्पवराई बत्तीसइबद्धणं नाडएणं, अट्ठ आसे आसप्पवरे सव्वरयणामए सिरिधरपडिरूवए, अट्ट हत्थी हथिपवरे, सम्वरपणामए सिरिघरपडिरूवए, अट्ठ जाणाई जाणप्पवराई, अट्ठ जुगाइं जुगप्पराई, एवं सिबियानो, एवं संदमाणियाओ, एवं गिल्लीओ थिल्लोओ, अट्ठ वियडजाणाई बियडजाणपवराई, अट्ठ रहे पारिजाणिए, अट्ठ रहे संगामिए, अट्ट प्रासे आसप्पवरे, अठ्ठ हत्थी हथिप्पवरे, अट्ठ गामे गामप्पवरे दसकुलसाहस्सिएणं गामेणं, अट्ठ दासे दासवप्पवरे, एवं दासोओ, एवं किंकरे, एवं कंचुइज्जे, एवं वरिसधरे, एवं महत्तरए, अट्ठ सोवण्णिए ओलंबणदीवे, अट्ट रुप्पामए ओलंबणदीवे, अट्ठ सुवण्णरुप्पामए अोलंबणदीवे, अट्ठ सोवणिए उक्कंपणदीवे, एवं चेव तिण्णि वि; अट्ट सोण्णिए पंजरदीबे, एवं चेव तिणि वि; अट्ट सोवणिए थाले, अट्ट रुप्पामए थाले, अट्ट सुवण्ण-रुप्पामए थाले, अट्ट सोवणियाओ पत्तीओ, अट्ट रुप्पामयाओ पत्तीओ, अट्ट सुवण्ण रुप्पामयाओ पत्तीमो; अढ सोवणियाइं थासगाई 3, अट्ट सोवणियाई मल्लगाई 3, अट्ठ -..--.- -.. - - . 1. वियाहपण्णत्तिसुत्त (मूलपाठ-टिप्पण), भा. 2, पृ. 548 2. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 547 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org