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________________ 90] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र आदि सभी संस्कारों (कौतुक) का निरूपण और (3) पढ़ने के लिए कलाचार्य के पास भेजना, (4) महाबल का भोगसमर्थ अर्थात् तरुण हो जाना / ' बल राजा द्वारा राजकुमार के लिए प्रासादनिर्माण 48. तए णं तं महम्बलं कुमारं उम्मुक्कबालभावं जाव अलंभोगसमत्थं विजाणित्ता अम्मापियरो अट्ठ पासायव.सए कारेति / प्रभुग्गयमूसिय पहसिते इव वण्णो जहा रायप्पसेणइज्जे जाव पडिरूवे। तेसि णं पासायव.सगाणं बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महेगं भवणं कारेंति अणेगखंभसयसन्निविठें, वण्णओ जहा रायप्पसेणइज्जे पेच्छाघरमंडसि जाय पडिरूवं / [48] महाबल कुमार को बालभाव से उन्मुक्त यावत् पूरी तरह भोग-समर्थ जानकर मातापिता ने उसके लिए पाठ सर्वोत्कृष्ट प्रासाद बनवाए। वे प्रासाद राजप्रश्नीयसूत्र (में वणित प्रासादवर्णन) के अनुसार अत्यन्त ऊँचे यावत् सुन्दर (प्रतिरूप) थे। उन आठ श्रेष्ठ प्रासादों के ठीक मध्य में एक महाभवन तैयार करवाया, जो अनेक सैकड़ों स्तंभों पर टिका हा था। उसका वर्णन भी राजप्रश्नीयसूत्र के प्रेक्षागृहमण्डप के वर्णन के अनुसार जान लेना चाहिए यावत् वह अतीव सुन्दर था। विवेचन—प्रस्तुत 48 वें सूत्र में महाबल कुमार के माता-पिता द्वारा उसके लिए आठ श्रेष्ठ प्रासाद और मध्य में एक महाभवन बनवाने का उल्लेख है / अभुग्गयमूसिय-अत्यन्त उच्चता को प्राप्त / 2 पहसिते इव-मानो हँस रहा हो, इस प्रकार का प्रबल श्वेतप्रभापटल था / पाठ कन्याओं के साथ विवाह 49. तए णं तं महब्बलं कुमारं अम्मा-पियरो अन्नया कयाइ सोभणंसि तिहि-करण-दिवसनक्खत्त-मुहुतंसि हायं कयबलिकम्म कयकोउय-मंगल-पायच्छित्तं सवालंकारविभूसियं पमक्खणगव्हाण-गीय-वाइय-पसाहणटुंगतिलग-कंकणअविहबबहुउवणीयं मंगल-सुपितेहि य वरकोउय-मंगलोवयारकयसंतिकम्मं सरिसियाणं सरित्तयाणं सरिन्वयाणं सरिसलायण्ण-रूव-जोवण-गुणोववेयाणं विणीयाणं कयकोउय-मंगलोवयारकतसंतिकम्माणं सरिसरहिं रायकुलेहितो आणितेल्लियाणं अट्ठण्हं रायवरकन्नाणं एगदिवसेणं पाणि गिहाविसु / [46] तत्पश्चात् किसी समय शुभ तिथि, करण, दिवस, नक्षत्र और मुहूर्त में महाबल कुमार ने स्नान किया, न्योछावर करने की क्रिया (बलिकर्म) की, कौतुक-मंगल प्रायश्चित्त किया। उसे समस्त अलंकारों से विभूषित किया गया। फिर सौभाग्यवती (सधवा) स्त्रियों के द्वारा अभ्यंगन, स्नान, गीत, बादित, मण्डन (प्रसाधन), आठ अंगों पर तिलक (करना), लाल डोरे के रूप में कंकण (बांधना) तथा दही, अक्षत आदि मंगल अथवा मंगलगीत -विशेष-रूप में प्राशीर्वचनों से मांगलिक कार्य किये गए तथा उत्तम कौतुक एवं मंगलोपचार के रूप में शान्तिकर्म किये गए / तत्पश्चात् - -. -- - 1. वियाहरण ति सुत्तं, भा. 2 (मूलपाठटिप्पण), पृ. 547 2. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 545 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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