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________________ ग्यारहवां शतक : उद्देशक-११) पितामह, प्रपितामह एवं पिता के प्रपितामह द्वारा प्राया हुआ। बहुपुरिसपरंपरप्परूढं अनेक पूर्वपुरुषों की परम्परा--पीढियों से रूढ़ / गोण्णं -गुणानुसार / ' महाबल का पंच धात्रियों द्वारा पालन एवं तारुण्यभाव 45. तए णं से महबले दारए पंचधातीपरिग्गहिते, तं जहा–खीरधातीए एवं जहा दढप्पतिण्णे' जाव निवातनिव्वाधातंसि सुहंसुहेणं परिवड्डइ। [45] तदनन्तर उस बालक महाबल कुमार का-१. क्षीरधात्री, 2. मज्जनधात्री, 3. मण्डनधात्री, 4. क्रीड़नधात्री और 5. अंधात्री, इन पांच धात्रियों द्वारा राजप्रश्नीयसूत्र में वर्णित दृढ़प्रतिज्ञ कुमार के समान लालन-पालन होने लगा यावत् वह महाबल कुमार वायु और व्याघात से रहित स्थान में रही हुई चम्पकलता के समान अत्यन्त सुखपूर्वक बढ़ने लगा। 46. तए णं तस्स महब्बलस्स दारगस्स अम्मा-पियरो अणुपुव्वेणं ठितिवडियं वा चंद-सूरदंसावणियं वा जागरियं वा नामकरणं वा परंगामणं वा पयचंकमावणं वा जेमावणं वा पिंडवद्धणं वा पजपामणं वा कण्णवेहणं वा संवच्छरपडिलेहणं वा चोलोयणगं वा उवणयणं वा अन्नाणि य बहूणि गब्भाधाणजम्मणमादियाई कोतुयाइं करेंति / [46] साथ ही, महाबल कुमार के माता-पिता ने अपनी कुलमर्यादा की परम्परा के अनुसार (जन्मदिन से लेकर) क्रमशः चन्द्र-सूर्य-दर्शन, जागरण, नामकरण, घुटनों के बल चलना (परंगामन), पैरों से चलना (पाद-चक्रमापन), अन्नप्राशन (अन्न-भोजन का प्रारम्भ करना), ग्रासवर्द्धन (कौर बढ़ाना), संभाषण (बोलना सिखाना), कर्णवेधन (कान बिंधाना), संवत्सरप्रतिलेखन (वर्षगांठ-मनाना) नवखत्तः शिखा (चोटी) रखवाना और उपनयन संस्कार करना, इत्यादि तथा अन्य बहुत-से गर्भाधान, जन्म-महोत्सव आदि कौतुक किये। 47. तए णं तं महम्बलं कुमारं अम्मा-पियरो सातिरेगट्ठवासगं जाणित्ता सोभणंसि तिहिकरणनक्खत्तमुहुत्तंसि एवं जहा दढप्पतिण्णो जाव: अलंभोगसमत्थे जाए यावि होत्था / [47] फिर उस महाबल कुमार के माता-पिता ने उसे पाठ वर्ष से कुछ अधिक वय का जान कर शुभ तिथि, करण, नक्षत्र और मुहूर्त में कलाचार्य के यहाँ पढ़ने के लिए भेजा, इत्यादि समस्त वर्णन दृढ़प्रतिज्ञ कुमार के अनुसार कहना चाहिए यावत् महाबल कुमार भोगों का उपभोग करने में समर्थ (तरुण) हुआ। विवेचन--प्रस्तुत तीन सूत्रों (45 से 47 तक) में चार तथ्यों का प्रतिवेशपूर्वक संक्षिप्त वर्णन किया है / (1) पांच धात्रियों द्वारा महाबल का सुखपूर्वक पालन, (2) क्रमश: चन्द्र-सूर्यदर्शन 1. भगवतो अ. वृत्ति, पत्र 544-545 2. प्रौपपातिक सूत्र में मूचित पाठ... 'मज्जणधाईए मंडणधाईए कोलावणधाईए, अंकधाईए इत्यादि / –औप. सू. 40, पत्र 98 3. 'एवं जहा दढरपतिपणों' इत्यादि से सूचित पाठ - "सोहणसि तिहि-करण-नक्खत्त-मुहत्तं सि व्हायं कयबलिकम्म कयकोउय-मंगल-पायच्छित सव्वालंकारविभूसियं महया इसिक्कारसमुदएणं कलारियम्स उवणयंति इत्यादीति" अ. द.। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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