________________ 8 ] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र गुणनिष्फन्नं नामधेन्जं करेंति-जम्हा णं अम्हं इमे दारए बलस्स रणो पुत्ते पभावतीए देवीए प्रत्तए तं होउ णं अम्हं इमस्स दारयस्स नामधेज्ज महब्बले। तए णं तस्य दारगस्स अम्मापियरो नामधेनं करेंति 'महम्बले' त्ति / [44] तदनन्तर उस बालक के माता-पिता ने पहले दिन कुलमर्यादा के अनुसार प्रक्रिया (स्थितिपतिता) की। तीसरे दिन (बालक को) चन्द्र-सूर्य-दर्शन की क्रिया की / छठे दिन जागरिका (जागरणरूप उत्सव क्रिया) की। ग्यारह दिन व्यतीत होने पर प्रशचि जातककर्म से निवत्ति की। हवाँ दिन आने पर विपल अशन, पान, खादिम, स्वादिम (चविध अाहार) तैयार कराया। फिर (श. 11, उद्देशक 6, सू. 11 में कथित) शिव राजा के समान यावत् समस्त क्षत्रियों यावत् ज्ञातिजनों को आमंत्रित किया और भोजन कराया। इसके पश्चात् स्नान एवं बलिकर्म किए हुए राजा ने उन सब मित्र, ज्ञातिजन आदि का सत्कारसम्मान किया। और फिर उन्हीं मित्र, ज्ञातिजन यावत् राजा और क्षत्रियों के समक्ष अपने पितामह, प्रपितामह एवं पिता के प्रपितामह आदि से चले आते हुए, अनेक पुरुषों की परम्परा से रूढ़, कुल के अनुरूप, कुल के सदृश (योग्य) कुलरूप सन्तान-तन्तु की वृद्धि करने वाला, गुणयुक्त एवं गुणनिष्पन्न ऐसा नामकरण करते हए कहा कि हमारा यह बालक बल राजा का पूत्र और प्रभावती देवी का प्रात्मज है, इसलिए (हम चाहते हैं कि हमारे इस बालक का 'महाबल' नाम हो / अतएव उस बालक के माता-पिता ने उसका नाम 'महाबल' रखा / विवेचन--प्रस्तुत पांच सूत्रों (40 से 44 तक) में निम्नोक्त घटनाक्रम का वर्णन किया गया है- (1) बल राजा द्वारा कौटुम्बिक पुरुषों को नगर-स्वच्छता, कैदियों को मुक्ति, नापतौल में वृद्धि, पूजा अादि से पुत्र-जन्ममहोत्सव की तैयारी का आदेश, (2) दस दिनों के पुत्रजन्ममहोत्सव में अनेक प्रकार के आयोजन राजा द्वारा कराए गए, (3) माता-पिता द्वारा प्रथम, तृतीय, छठे, ग्यारहवें एवं बारहवे दिवस तक के पुत्रजन्म उत्सव से सम्बन्धित विविध कार्यक्रम सम्पन्न कराए, (4) मित्र, ज्ञातिजन आदि सबको आमंत्रित कराया, भोजन तैयार कराया, भोजन कराया। (5) तदनन्तर कुलपरम्परानुसार बालक का गुणनिष्पन्न नाम महाबल रखा / '. कठिन शब्दों का भावार्थ-चारगसोहणं-कारागार खाली करना-कैदियों को छोड़ना। उस्सुक्क-शुल्करहित, उक्कर-कर रहित / उक्किट्ठ-भूमिकर्षण-रहित / अभडप्पवेसं-प्रजा के घर में सुभट-प्रवेश निषिद्ध / अदिज्जनहीं देने योग्य-अदेय / अमिज्जं–नापने-तौलने योग्य नहीं। अदंड-कोदंडिम-दण्डयोग्य द्रव्य तथा कुदण्डयोग्य द्रव्य के ग्रहण से रहित / अधरिमं-ऋण लेने-देने में होने वाले झगड़ों को रोकने में धारणीय द्रव्य से रहित / गणिया-वर-णाडइज्ज-कलियं—प्रधानगणिकाओं तथा नाटक करने वालों से युक्त / अणेयतालाचराणुचरियं-अनेक तालचरों के द्वारा ताल आदि बजाने को सेवामों से युक्त / अणुद्धय-मुइंग-मृदंगों को निरन्तर उन्मुक्तरूप से बजाने बाले वादकों से युक्त / ठितिबडियं -स्थितिपतित-पुत्रजन्ममहोत्सव / जाए-याग-पूजा / दाए-दान / भाएभाग / असुइजायकम्मकरणं-अशुचिनिवारण रूप जातक करना / अज्जय-पज्जय-पिउपज्जयागयं 1. वियाहपत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण), भा. 2, पृ. 546-5.47 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org