________________ ग्यारहवां शतक : उद्देशक-११] [87 41. तए णं ते कोड बियपुरिसा बलेणं रण्णा एवं वृत्ता जाव पच्चपिणंति / / [41] तदनन्तर बल राजा के उपर्युक्त आदेशानुसार यावत् कार्य करके उन कौटुम्बिक पुरुषों ने आज्ञानुसार कार्य हो जाने का निवेदन किया / 42. तए णं से बले राया जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छति, ते० उ० 2 तं चेव जाव मज्जणघराओ पडिनिक्खमति, प०२ उस्सुक उक्करं उक्किट्ठे अदेज्ज अमेज्जं अभडप्पवेसं अदंडकोदंडिमं अधरिमं गणियावरनाडइज्जकालयं अणेगतालाचराणुरियं अणु यमुइंग अमिलायमल्लदामं पमुइयपक्कोलियं सपुरजणजाणवयं दसदिवसे ठितिवडियं करेति / [42] तत्पश्चात् बल राजा व्यायामशाला में गये। वहाँ जाकर व्यायाम किया और स्नानादि किया, इत्यादि वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए; यावत् बल राजा स्नानगृह से निकले / (नरेश ने दस दिन के लिए) प्रजा से शुल्क तथा कर लेना बन्द कर दिया, भूमि के कर्षण—जोतने का निषेध कर दिया, ऋय, विक्रय का निषेध कर देने से किसी को कुछ मूल्य देना, या नाप-तौल करना न रहा। कुटुम्बियों (प्रजा) के घरों में सुभटों का प्रवेश बंद कर दिया / राजदण्ड से प्राप्य दण्ड द्रव्य तथा अपराधियों को दिये गए कुदण्ड से प्राप्य द्रव्य लेने का निषेध कर दिया। किसी को ऋणी न रहने दिया जाए। इसके अतिरिक्त (वह उत्सव) प्रधान गणिकाओं तथा नाटकसम्बन्धी पात्रों से युक्त था / अनेक प्रकार के तालानुचरों द्वारा निरन्तर करताल प्रादि तथा वादकों द्वारा मृदग उन्मुक्त रूप से बजाए जा रहे थे। बिना कुम्हलाई हुई पुष्पमालाओं (से यत्रतत्र सजावट की गई थो।) उसमें आमोद-प्रमोद और खेलकुद करने वाले अनेक लोग भी थे / सारे ही नगरजन एवं जनपद के निवासी (इस उत्सव में सम्मिलित थे।) इस प्रकार दस दिनों तक राजा द्वारा पुत्रजन्म महोत्सव प्रक्रिया (स्थितिपतिताकुलमर्यादागत प्रक्रिया) होती रही। 43. तए णं से बले राया दसाहियाए ठितिवडियाए वट्टमाणीए सतिए य साहस्सिए य सयसाहस्सिए य जाए य दाए य भाए य दलमाणे य दवावमाणे य सतिए य साहस्सिए य सयसाहस्सिए य लाभे पडिच्छमाणे य पडिच्छावेमाणे य एवं विहरति / / 43. इन दस दिनों की पुत्रजन्म संबंधी महोत्सव-प्रक्रिया (स्थितिपतिता) जब प्रवृत्त हो (चल) रही थी, तब बल राजा सैकड़ों, हजारों और लाखों रुपयों के खर्च वाले याग-कार्य करता रहा तथा दान और भाग देता और दिलवाता हुप्रा एवं सैकड़ों, हजारों और लाखों रुपयों के लाभ (उपहार) देता और स्वीकारता रहा। 44. तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे ठितिवडियं करेंति, ततिए दिवसे चंदसरदंसावणियं करेंति, छठे दिवसे जागरियं करेंति / एक्कारसमे दिवसे वोतिक्कते, निव्वत्ते असुइजायकम्मकरणे, संपत्ते बारसाहदिवसे विउलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेंति, उ० 2 जहा सिवो (स. 11 उ.९ सु. 11) जाव खत्तिए य प्रामति, आ० 2 ततो पच्छा पहाता कत० तं चेव जाव सक्कारेंति सम्मानुति, स० 2 तस्सेव मित्त-शाति जाव राईण य खत्तियाण य पुरितो अज्जयपज्जयपिउपज्जयागयं बहुपुरिसपरंपरप्परूढं कुलाणुरूवं कुलसरिसं कुलसंताणतंतुवद्धणकरं अयमेयारूवं गोण्णं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org