________________ ग्यारहवां शतक : उद्देशक-११ ] [85 'पसत्थदोहला' आदि शब्दों का भावार्थ-पसत्थदोहला उसके दोहद अनिन्द्य थे / संपुण्णदोहला-दोहद पूर्ण किये गए / सम्माणियदोहला—अभिलाषा के अनुसार उसके दोहद सम्मानित किये गए / अधिमाणियदोहला-क्षणभर भो लेशमात्र भी दोहद अपूर्ण न रहे / वोच्छिन्नदोहला-गर्भवती की मनोवाँछाएँ समाप्त हो गई / विणीयदोहला-सब दोहले सम्पन्न हो गए। हियं मियं पत्थं गम्भपोसणं गर्भ के लिए हितकर, परिमित, पथ्यकर एवं पोषक / उउभयमाणसुहेहिं—प्रत्येक ऋतु में उपभोग्य सुखकारक। विवित्तमउएहि विविक्त–दोषरहित एवं कोमल / ' पुत्रजन्म, दासियों द्वारा बधाई और उन्हें राजा द्वारा प्रीतिदान 37. तए णं सा पभावती देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुग्णाणं अट्ठमाण य राइंदियाणं वोतिक्कताणं सुकुमालपाणि-पायं अहीणपडिपुण्णचिदियसरीरं लक्खण-बंजण गुणोववेयं जाव ससिसोमागारं कंतं पियदसणं सुरूवं दारयं पयाता। [37] इसके पश्चात् नौ महीने और साढ़े सात दिन परिपूर्ण होने पर प्रभावती देवी ने, सूकमाल हाथ और पैर वाले, हीन अंगों से रहित, पांचों इन्द्रियों से परिपूर्ण शरीर वाले तथा लक्षणव्यञ्जन और गुणों से युक्त यावत् चन्द्रमा के समान सौम्य प्राकृति वाले, कान्त, प्रियदर्शन एवं सुरूप पूत्र को जन्म दिया। 38. तए णं तीसे पभावतीए देवीए अंगपडियारियाओ पनाति देवि पसूयं जाणेत्ता जेणेव बले राया तेणेव उवागच्छति, उवा० 2 करयल जाव बलं रायं जएणं विजएणं वद्धाति, ज० 202 एवं वदासि—एवं खलु देवाणुप्पिया ! पभावती देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुग्णाणं जाव दारयं पयाता, तं एवं णं देवाणुप्पियाणं पियदुताए पियं निवेदेमो, पियं ते भवउ / [38] पुत्र जन्म होने पर प्रभावती देवी की अंगपरिचारिकाएँ (सेवा करने वाली दासियाँ) प्रभावती देवी को प्रसूता (पुत्रजन्मवती) जान कर बल राजा के पास प्राई, और हाथ जोड़ कर उन्हें जय-विजय शब्दों से बधाया / फिर उन्होंने राजा से इस प्रकार निवेदन किया--हे देवानुप्रिय ! प्रभावती देवी ने नौ महीने और साढ़े सात दिन पूर्ण होने पर बावत् सुरूप बालक को जन्म दिया है / अतः देवानुप्रिय की प्रीति के लिए हम यह प्रिय समाचार निवेदन करती हैं / यह अापके लिए प्रिय हो। 39. तए णं से बले राया अंगपडियारियाणं अंतियं एयमझें सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ जाव धारायणीव जाव रोमको तासि अंगपडियारियाणं मउडवज जहामालियं श्रोमोयं दलयति, ओ० द० 2 सेतं रययमयं विमलसलिलपुण्णं भिगारं पगिण्हति, भि०प० 2 मत्थए धोवति, म० धो० 2 विउलं जीवियारिहं पोतिदाणं दलति, वि० द० 2 सक्कारेइ सम्माणेइ, स० 2 पडिविसज्जेति / [36] अंगपरिचारिकाओं (दासियों) से यह (पुत्रजन्मरूप) प्रिय समाचार सुन कर एवं हृदय में धारण कर बल राजा हर्षित एवं सन्तुष्ट हुआ; यावत् मेघ की धारा से सिंचित कदम्बपुष्प 1. भगवती. अ. वत्ति, पत्र 543 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org