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________________ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 2 बलेणं रण्णा अम्भणुण्णाता समाणी नाणामणि-रयणभत्ति जाव अम्भुट्ठति, अ० 2 अतुरितमचवल जाव गतीए जेणेव सए भवणे तेणेव उवागच्छति, ते० उ० 2 सयं भवणमणुपविट्ठा। [35] तब बल राजा से उपर्युक्त (स्वप्न-फलरूप) अर्थ सुन कर एवं उस पर विचार करके प्रभावती देवी हर्षित एवं सन्तुष्ट हुई / यावत् हाथ जोड़ कर इस प्रकार बोली देवानुप्रिय ! जैसा आप कहते हैं, वैसा ही यह (स्वप्नफल) है। यावत् इस प्रकार कह कर उसने स्वप्न के अर्थ को भलीभांति स्वीकार किया और बल राजा की अनुमति प्राप्त होने पर वह अनेक प्रकार के मणिरत्नों की कारीगरी से निर्मित उस भद्रासन से यावत् उठी; शीघ्रता तथा चपलता से रहित यावत् हंसगति से जहाँ अपना (वास) भवन था, वहाँ आ कर अपने भवन में प्रविष्ट हुई। 36. तए णं सा पभावती देवी पहाया कयबलिकम्मा जाव सब्बालंकारविभूसिया तं गम्भं गातिसीतेहिं नातिउण्हेहिं नातितित्तेहिं नातिकडुएहि नातिकसाएहिं नातिअंबिलेहि नातिमहुरेहि उउभयमाणसुहेहि भोयण-ऽच्छायण-गंध-मल्लेहिं जं तस्स गम्भस्स हियं मितं पत्थं गम्भपोसणं तं देसे य काले य आहारमाहारेमाणी विवित्तमउहि सयणासहिं पतिरिक्कसुहाए मणाणुक्लाए विहारभूमीए पसत्थदोहला संपुण्णदोहला सम्माणियदोहला अविमाणियदोहला वोच्छिन्नदोहला विणीयदोहला ववगयरोग-सोग-मोह-भय-परित्तासा तं गम्भं सुहंसुहेणं' परिवहइ / [36] तदनन्तर प्रभावती देवी ने स्नान किया, शान्तिकर्म किया और फिर समस्त अलंकारों से विभूषित हुई / तत्पश्चात् वह अपने गर्भ का पालन करने लगी। अब उस गर्भ का पालन करने के लिए वह न तो अत्यन्त शीतल (ठंडे) और न अत्यन्त उष्ण, न अत्यन्त तिक्त (तीखे) और न अत्यन्त कडुए, न अत्यन्त कसैले, न अत्यन्त खट्ट और न अत्यन्त मीठे पदार्थ खाती थी परन्तु ऋतु के योग्य सुखकारक भोजन आच्छादन (प्रावास या वस्त्र), गन्ध एव माला का सेवन करके गर्भ का पालन करती थी / वह गर्भ के लिए जो भी हित, परिमित, पथ्य तथा गर्भपोषक पदार्थ होता, उसे ग्रहण करती तथा उस देश और काल के अनुसार प्रहार करती रहती थी तथा जब वह दोषों से रहित (वियुक्त) मृदु शय्या एवं आसनों से एकान्त शुभ या सुखद मनोनुकूल विहारभूमि में थी तब प्रशस्त दोहद उत्पन्न हुए, वे पूर्ण हुए / उन दोहदों को सम्मानित किया गया / किसी ने उन दोहदों की अवमानना नहीं की / इस कारण वे दोहद समाप्त हुए, सम्पन्न हुए / वह रोग, शोक, मोह, भय, परित्रास आदि से रहित होकर उस गर्भ को सुखपूर्वक वह्न करने लगी। विवेचन--प्रभावती रानी द्वारा गर्भ का परिपालन-प्रस्तुत 35-36 सूत्र में दो तथ्यों का निरूपण किया गया है—(१) प्रभावती रानी द्वारा स्वप्न का शुभ फल जान कर हर्षाभिव्यक्ति एवं (2) गर्भ का भलीभांति पालन / 1. पाठान्तर_"सुहंसुहेणं आसयइ सुपइ चिट्ठइ निसीयद तुयट्टइ।" अर्थात्--गर्भवती प्रभावती देवी सुखपूर्वक आश्रय लेती है, सोती है, खड़ी होती है, बैठती है, करवट बदलती है। --भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 543 2. बियाहपण त्ति सुतं (मूलपाठ-टिप्पण), भा. 2, पृ. 544-545 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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