________________ ग्यारहवां शतक : उद्देशक-११] [ 3 सम्बसुविणा दिट्ठा। तत्थ णं देवाणुप्पिए ! तित्थगरमायरो वा चक्कट्टिमायरो वा, तं चेव जाव अन्नयरं एग महासुविणं पासित्ताणं पडिबुज्झति / इमे य गं तुमे देवाणुप्पिए ! एगे महासुविणे दिठे। तं ओराले णं तुमे देवी! सुविणे दिठे जाव रज्जवती राया भविस्सति अणगारे वा भावियप्पा, तं ओराले णं तुमे देवी ! सुविणे दिडे' ति कटु पभावति देवि ताहि इटाहि जाव दोच्चं पि तच्चं पि अणुबहइ। [34] तत्पश्चात् स्वप्नलक्षणपाठकों से इस (उपर्युक्त) स्वप्नफल को सुन कर एवं हृदय में अवधारण कर बल राजा अत्यन्त प्रसन्न एवं सन्तुष्ट हुया। उसने हाथ जोड़ कर यावत् उन स्वप्नलक्षणपाठकों से इस प्रकार कहा-'हे देवानुप्रियो ! आपने जैसा स्वप्नफल बताया, यावत् वह उसी प्रकार है / " इस प्रकार कह कर स्वप्न का अर्थ सम्यक् प्रकार से स्वीकार किया। फिर उन स्वप्नलक्षणपाठकों को विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम तथा पुष्प, वस्त्र, गन्ध, माला और अलकारों से सत्कारित-सम्मानित किया; जीविका के योग्य प्रीतिदान दिया एवं सबको विदा किया। तत्पश्चात् बल राजा अपने सिंहासन से उठा और जहाँ प्रभावती देवी बैठी थी, वहाँ पाया और प्रभावती देवी को इष्ट, कान्त यावत् मधुर वचनों से वार्तालाप करता हुआ (स्वप्नपाठकों से सुने हुए स्वप्न-फल को) इस प्रकार कहने लगा-"देवानुप्रिये ! स्वप्नशास्त्र में 42 सामान्य स्वप्न और 30 महास्वप्न, इस प्रकार 72 स्वप्न बताए हैं। देवानुप्रिये ! उनमें से तीर्थंकरों को माताएँ या चक्रवतियों की माताएँ इनमें से किन्हीं 14 महास्वप्नों को देखकर जागती हैं; इत्यादि सब वर्णन पूर्ववत कहना चाहिए, यावत् माण्डलिकों की माताएँ इन में से किसी एक महास्वप्न को देखकर जागृत होती हैं। देवानुप्रिये ! तुमने भी इन चौदह महास्वप्नों में से एक महास्वप्न देखा है। हे देवी ! सचमुच तुमने एक उदार स्वप्न देखा है, जिसके फलस्वरूप तुम यावत् एक पुत्र को जन्म दोगी, जो या तो यावत् राज्याधिपति राजा होगा, अथवा भावितात्मा अनगार होगा। इसलिए, देवानुप्रिये ! तुमने एक उदार यावत् मंगलकारक स्वप्न देखा है। इस प्रकार इप्ट, कान्त, प्रिय यावत् मधुर वचनों से उसी बात को दो-तीन बार कह कर उसकी प्रसन्नता में वृद्धि की। विवेचन राजा द्वारा स्वप्नपाठक सत्कारित-सम्मानित तथा प्रभावती देवी को स्वप्नफलसुना कर प्रोत्साहित किया--प्रस्तुत 34 वें सूत्र में दो घटनाक्रमों का उल्लेख है -स्वप्नपाठकों से स्वप्नफल सुनकर राजा ने उनका सत्कार-सम्मान किया और (2) स्वप्नपाठकों से सुना हुआ स्वप्नफल रानी को सुनाया और उसकी प्रसन्नता बढ़ाई।' जीवियारिहं पोतिदाणंः –जीवननिर्वाह हो सके, इतने धन का प्रीतिपूर्वक दान। अथवा जीविकोचित प्रोतिदान / / स्वप्नफल श्रवणानन्तर प्रभावती द्वारा यत्नपूर्वक गर्भ-संरक्षण 35. तए णं सा पभावती देवी बलस्स रणो अंतियं एयमठ्ठ सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ट० करयल जाव एवं वदासी-एवमेयं देवाणुप्पिया! जाव तं सुविणं सम्म पउिच्छति, तं० पडि. 1. वियाहपण्णत्तिसुत्तं, शा. 2, (मूलपाठ-टिप्पण) पृ. 544 2. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 543 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org