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________________ 22] [ व्याख्यानज्ञप्तिसून [4] "एवं खलु देवाणुप्पिया! पभावती देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव वीतिक्कताणं तुम्ह कुलकेउं जाव पयाहिति / से वि य णं दारए उम्मुक्कबालभावे जाव रज्जवती राया भविस्सति, अणगारे वा भावियप्पा / तं प्रोराले णं देवाणुप्पिया! पभावतीए देवीए सुविणे दिठे जाव आरोग्ग-तुढ़ि-दोहाउ-कल्लाण जाव दिलें।" [33-4] अतः, हे देवानुप्रिय ! यह निश्चित है कि प्रभावती देवी नौ मास और साढ़े सात दिन व्यतीत होने पर आपके कुल में ध्वज (केतु) के समान यावत् पुत्र को जन्म देगी। वह बालक भी बाल्यावस्था पार करने पर यावत् राज्याधिपति राजा होगा अथवा वह भावितात्मा अनगार होगा। इसलिए हे देवानुप्रिय ! प्रभावती देवी ने जो यह स्वप्न देखा है, वह उदार है, यावत् अारोग्य, तुष्टि, दीर्घायु एवं कल्याणकारक यावत् स्वप्न देखा है / विवेचन राजा को स्वप्नफलजिज्ञासा और स्वप्नपाठकों द्वारा समाधान प्रस्तुत (3233) दो सूत्रों में निम्नलिखित घटनाओं का प्रतिपादन किया गया है—(१) राजा के द्वारा प्रभावती रानी के देखे हुए स्वप्न के फल की जिज्ञासा, (2) स्वप्नपाठकों द्वारा सामान्य-विशेषरूप से स्वप्न के सम्बन्ध में ऊहापोह एवं परस्पर विचार-विनिमय करके फल का निश्चय, (3) स्वप्नपाठकों द्वारा स्वप्नशास्त्रानुसार स्वप्नों के प्रकार का एवं महास्वप्नों को देखने वाली विभिन्न माताओं का विश्लेषण तथा (4) प्रभावती रानी द्वारा देखे गए एक महास्वप्न के प्रकार का निर्णय, (5) उक्त महास्वप्न के फलस्वरूप प्रभावती देवी के राज्याधिपति या भावितात्मा अनगार के रूप में पुत्र होने का भविष्य कथन / ' विमान और भवन : दो स्वप्न या एक तीर्थकर या चक्रवर्ती जब माता के गर्भ में आते हैं, तब उनकी माता 14 महास्वप्न देखती हैं। उनमें से 12 वें स्वप्न में दो शब्द हैं----विमान और भवन / उसका आशय यह है कि जो जीव देवलोक से प्राकर तीर्थकर के रूप में जन्म लेता है, उसकी माता स्वप्न में 'विमान देखती है और जो जीव नरक से आकर तीर्थंकर रूप में जन्म लेता है, उसकी माता स्वप्न में 'भवन' देखती है। राजा द्वारा स्वप्नपाठक सत्कृत एवं रानी को स्वप्नफल सुना कर प्रोत्साहन 34. तए णं से बले राया सुविणलक्खणपाढगाणं अंतिए एयमठे सोच्चा निसम्म हट्ठतु/करयल जाव कटु ते सुविणलक्खणपाढगे एवं क्यासी—'एवमेयं देवाणुप्पिया ! जाव से जहेयं तुम्भे वदह', त्ति कटु तं सुविणं सम्म पडिच्छति, 20 प० 2 सुविणलक्खणपाढए विउलेणं असण-पाणखाइम-साइम-पुष्फ-वत्थ-गंधमल्लालंकारेणं सक्कारेति सम्माति, स० 2 विउलं जीवियारिहं पीतिदाणं दलयति, वि० द० 2 पडिविसज्जेति, पडि० 2 सीहासणाप्रो अन्भुट्ठति, सी० अ० 2 जेणेव पभावती देवी तेणेव उवागच्छति, ते० उ० 2 पभावति देवि ताहि इट्टाहि जाव संलवमाणे संलवमाणे एवं वयासी-- "एवं खलु देवाणुप्पिए ! सुविणसत्थंसि बायालीसं सुविणा, तीसं महासुविणा, बावरि 1. वियाहपण्णत्तिसुतं (मूलपाठ टिप्पण), भा. 2, पृ. 542-543 2. भगवती. ऋ. वृत्ति, पत्र 543 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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