________________ ग्यारहवां शतक : उद्देशक-११] [81 जाना, दूसरे से ग्रहण किया, एक दूसरे से पूछकर शंका-समाधान किया, अर्थ का निश्चय किया और प्रर्थ पूर्णतया मस्तिष्क में जमाया / फिर बल राजा के समक्ष स्वप्नशास्त्रों का उच्चारण करते हुए इस प्रकार बोले [2] "एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं सुविणसत्थंसि बायालीसं सुविणा, तीस महासुविणा, बावरि सव्वसुविणा दिट्ठा। तत्थ णं देवाणुपिया! तित्थयरमायरो वा चक्कट्टिमायरो वा तित्थगरंसि वा चक्कट्टिसि वा गम्भं वक्कममाणसि एएसि तीसाए महासुविणाणं इमे चोद्दस महासुविणे पासित्ताणं पडिबुज्झति, तं जहा गय वसह सीह अभिसेय दाम ससि दिणयरं झयं कुभं। पउमसर सागर विमाण-भवण रयणुच्चय सिहि च // 1 // वासुदेवमायरो णं वासुदेवंसि गम्भं वक्कममाणंसि एएसि चोद्दसण्हं महासुविणाणं अन्नयरे सत्त महासुविणे पासित्ताणं पडिबुज्झति / बलदेवमायरो बलदेवसि गम्भं वक्कममाणंसि एएसि चोद्दसण्हं महासुविणाणं अन्नयरे चत्तारि महासुविणे पासित्ताणं पडिबुज्झति / मंडलियमायरो मंडलियंसि गम्भं वक्कममाणंसि एतेसि चोद्दसण्हं महासुविणाणं अन्नयरं एग महासुविणं पासित्ताणं पडिबुज्झति / " [33-2] "हे देवानुप्रिय ! हमारे स्वप्नशास्त्र में बयालीस सामान्य स्वप्न और तीस महास्वप्न, इस प्रकार कुल बहत्तर स्वप्न बताए हैं। तीर्थकर की माताएँ या चक्रवर्ती की माताएँ, जब तीर्थकर या चक्रवर्ती गर्भ में आते हैं, तब इन तीस महास्वप्नों में से ये 14 महास्वप्न देखकर जागत होती हैं। जैसे कि--(१) गज, (2) वृषभ, (3) सिंह, (4) अभिषिक्त लक्ष्मी, (5) पुष्पमाला, (6) चन्द्रमा, (7) सूर्य, (8) ध्वजा, (6) कुम्भ (कलश), (10) पम-सरोवर, (11) सागर, (12) विमान या भवन, (13) रत्नराशि और (14) निर्धू म अग्नि / / 1 / / जब वासुदेव गर्भ में आते हैं, तब वासुदेव की माताएँ इन चौदह महास्वप्नों में से कोई भी सात महास्वप्न देखकर जागती हैं। जब बलदेव गर्भ में पाते हैं, तब बलदेव-माताएँ इन चौदह महास्वप्नों में से कोई भी चार महास्वप्न देखकर जागती हैं। माण्डलिक जब गर्भ में पाते हैं, तब माण्डलिक को माताएँ, इन में से कोई एक महास्वप्न देखकर जागती हैं।" [3] "इमे य णं देवाणप्पिया ! पभावतीए देवीए एगे महासुविणे दिळे, तं ओराले णं देवाणुप्पिया ! पभावतीए देवीए सुविणे चिठे जाव आरोग्ग-तुट्ठि-जाब मंगल्लकारए गं देवाणुप्पिया ! पभावतीए देवीए सुविणे दिठे। अत्यलाभो देवाणुपिया ! भोगलाभो० पुत्तलाभो० रज्जलाभी देवाणुप्पिया ! / " [33-3] "हे देवानुप्रिय ! प्रभावती देवी ने इन (चौदह महास्वप्नों) में से एक महास्वप्न देखा है / अतः, हे देवानुप्रिय ! प्रभावती देवी ने उदार स्वप्न देखा है, सचमुच प्रभावती देवी ने यावत् प्रारोग्य, तुष्टि यावत् मंगलकारक स्वप्न देखा है / (यह स्वप्न सुख-समृद्धि का सूचक है।) हे देवानुप्रिय ! इस स्वप्न के फलरूप आपको अर्थलाभ, भोगलाभ, पुत्रलाभ एवं राज्यलाभ होगा।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org