SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1333
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 68] [भ्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र विवेचन प्रमाणकालसम्बन्धी प्ररूपणा--जिससे दिवस, रात्रि, वर्ष, शतवर्ष, आदि का प्रमाण जाना जाए, उसे प्रमाणकाल कहते हैं / यह दो प्रकार का माना गया है-दिवसप्रमाण काल और रात्रि प्रमाणकाल / सामान्यतया दिन या रात्रि का प्रमाण चार-चार प्रहर का माना गया है। प्रहर को पौरुषी कहते हैं / जितने मुहर्त का दिन या रात्रि होती है, उसका चौथा भाग पौरुषी कहलाता है। दिवस और रात्रि को उत्कृष्ट पौरुषी साढ़े चार मुहूर्त की होती है, और जघन्य पौरुषी तीन मुहूर्त को होती है। .. उत्कृष्ट (बड़ा) दिन और रात्रि , कब ?-प्राषाढ़ी पूर्णिमा को 18 मुहूर्त का दिन और पौषी पूर्णिमा को 18 मुहूर्त की रात्रि होती है, यह कथन पंच-संवत्सर-परिमाण-युग के अन्तिम वर्ष की अपेक्षा से समझना चाहिए / दूसरे वर्षों में तो जब कर्कसंक्रान्ति होती है, तब ही 18 मुहर्त का दिन और रात्रि होती है / जब 18 मुहूर्त के दिन और रात होते हैं, तब उनकी पौरुषी 43 मुहूर्त की होती है। समान दिवस और रात्रि–चैत्री और आश्विनी पूर्णिमा को दिन और रात्रि दोनों बराबर होते हैं, अर्थात इन दोनों में 15-15 मुहूर्त का दिन और रात्रि होते हैं / यह कथन भी व्यवहारनय की अपेक्षा से है। निश्चय में तो कर्क संक्रान्ति और मकर संक्रान्ति से जो 62 वाँ दिन होता है, तब रात्रि और दिवस दोनों समान होते हैं। जघन्य विवस और रात्रि—बारह मुहर्त की जघन्य रात्रि आषाढ़ी-पूर्णिमा को और 12 मुहूर्त का जघन्य दिन षोषी पूर्णिमा को होता है। जब 12 मुहूर्त के दिन और रात होते हैं, तब दिन एवं रात्रि की पौरुषी तीन मुहूर्त की होती है / यथायुनिर्वत्तिकाल-प्ररूपणा 14. से कितं अहाउनिव्वत्तिकाले ? अहाउनिवत्तिकाले, जंणं जेणं नेरइएण वा तिरिक्खजोणिएण वा मणुस्सेण वा देवेण वा अहाउयं निव्वत्तियं से त्तं अहाउनिव्वत्तिकाले। [14 प्र.] भगवन् ! वह यथायुर्निर्वृत्तिकाल क्या है ? 14 उ.] (सुदर्शन ! ) जिस किसी नैरयिक, तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य अथवा देव ने स्वयं जो (जिस गति का) और जैसा भी आयुष्य बांधा है, उसी प्रकार उसका पालन करना-भोगना, 'यथायुनिवृत्तिकाल कहलाता है। यह हुमा यथायुनिर्वृत्तिकाल को लक्षण / विवेचन-यथायनिर्वत्तिकाल की परिभाषा--चारों गतियों में से जिस गति के जीव ने जिस भव की जितनी आयु बांधी है, उतना अायुष्य भोगना यथायुनिर्वृत्तिकाल कहलाता है / / 1. भगबती. अ. वत्ति, पत्र 533-534 2. यथायेन प्रकारेणायूषो निर्वत्तिः = बन्धनं, तथा य: काल:-अवस्थितिरसौ यथायूनिवत्तिकालो नारका द्यायुष्कलक्षणः ।'—भगवती. अ.व. पत्र 533 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy