________________ ग्यारहवां शतक : उद्देशक-११] [10 उ.] हे सुदर्शन ! जब उत्कृष्ट अठारह मुहर्त का दिन होता है तथा जघन्य बारह मुहूर्त की छोटी रात्रि होती है, तब साढे चार मुहूर्त की दिवस की उत्कृष्ट पौरुषी होती है और रात्रि को तीन मुहूर्त की सबसे छोटी पौरुषी होती है। जब उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त की बड़ी रात्रि होती है और जघन्य बारह मुहूर्त का छोटा दिन होता है, तब साढ़े चार मुहूर्त की उत्कृष्ट रात्रिपौरुषी होती है और तीन मुहूर्त की जघन्य दिवस-पौरुषी होती है। 11. कदा णं भंते ! उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवति, जहनिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति ? कदा वा उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता रातो भवति, जहन्नए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ ? सुदंसणा! आसादपुण्णिमाए उक्कोसए अट्ठारसमहुत्ते दिवसे भवति, जहनिया दुवालसमुहुत्ता राती भवइ; पोसपुणिमाए णं उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति, जहन्नए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवति। [11 प्र.] भगवन् ! अठारह मुहर्त का उत्कृष्ट दिवस और बारह मुहर्त की जघन्य रात्रि कब होती है ? तथा अठारह मुहूर्त को उत्कृष्ट रात्रि और बारह मुहूर्त का जघन्य दिन कब होता है ? [11 उ.] सुदर्शन ! अठारह मुहूर्त का उत्कृष्ट दिवस और बारह मुहूर्त की जघन्य रात्रि आषाढी पूर्णिमा को होती है ; तथा अठारह मुहूर्त की उत्कृष्ट रात्रि और बारह मुहूर्त का जघन्य दिवस पौषी पूर्णिमा को होता है / 12. अस्थि गं भंते ! दिवसा य रातीओ य समा चेव भवंति ? हंता, अस्थि / [12 प्र.] भगवन् ! कभी दिवस और रात्रि-दोनों समान भी होते हैं ? 12 उ.] हाँ, सुदर्शन ! होते हैं / 13. कदा णं भंते ! दिवसा य रातीओ य समा चेव भवंति ? सुदंसणा! चेत्तसोयपुण्णिमासु णं, एत्थ णं दिवसा य रातीओ य समा चेव भवंति; पन्नरसमहत्ते दिवसे, पन्नरसमुहुत्ता राती भवति; चउभागमुहुत्तभागूणा चउमुहुत्ता दिवस वा रातीए वा पोरिसी भवइ / से तं पमाणकाले। / 13 प्र.] भगवन् ! दिवस और रात्रि, ये दोनों समान कब होते हैं ? [13 उ.] सुदर्शन ! चैत्र को और आश्विन की पूर्णिमा को दिवस और रात्रि दोनों समान (बरावर) होते हैं / उस दिन 15 मुहूर्त का दिन और पन्द्रह मुहूर्त की रात होती है / तथा दिवस एवं रात्रि की पौने चार मुहूर्त की पौरुषी होती है / इस प्रकार प्रमाणकाल कहा गया है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org