________________ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [8 प्र.] भगवन् ! प्रमाणकाल क्या है ? [8 उ.] सुदर्शन ! प्रमाणकाल दो प्रकार का कहा गया है। यथा-दिवराप्रमाणकाल और रात्रि-प्रमाणकाल / चार पौरुषी (प्रहर) का दिवस होता है और चार पौरुषी (प्रहर) की रात्रि होती है / दिवस और रात्रि की पौरुषी उत्कृष्ट साढे चार मुहर्त की होती है, तथा दिवस और रात्रि की जघन्य पौरुषी तीन मुहूर्त की होती है / 9. जदा णं भंते ! उक्कोसिया अपंचममुहुत्ता दिवसस्स वा रातीए वा पोरिसी भवति तदा जं कतिभागमुहुत्तभागेणं परिहायमाणी परिहायमाणो जहन्निया तिमुहसा दिवसस्स वा रातीए वा पोरिसी भवति ? जदा णं जहन्निया तिमुहुत्ता दिवसस्स वा रातीए वा पोरिती भवति तदा णं कतिभागमुहत्तभागेणं परिवठ्ठमाणी परिवड्डमाणी उक्कोसिया अद्धपंचममुहसा दिवसस्स वा रातीए वा पोरिसी भवद ? ___ सुदंसणा! अदा णं उक्कोसिया अद्धपंचममुहुत्ता दिवसम्स वा रातीए वा पोरिसी भवति तदा णं बावीससयभागमुहुत्तभागेणं परिहायमागी परिहायमाणी जहन्निया तिमुहसा दिवस्स वा रातीए वा पोरिसी भवति / जदा वा जहन्निया तिमुहुत्ता दिवस्स वा रातीए वा पोरिसो भवति तदा णं बावीससयभागमुहत्तभागेणं परिवठ्ठमाणी परिवडमाणी उक्कोसिया अद्धपंचममुहुत्ता दिवस्स वा रातोए वा पोरिसी भवति / [प्र.] भगवन् ! जब दिवस की या रात्रि की पौरुषी उत्कृष्ट साढ़े चार मुहर्त की होती है, तब उस मुहर्त का कितना भाग घटते-घटते जघन्य तीन मुहर्त की दिवस और रात्रि की पौरुषी होती है ? और जब दिवस और रात्रि की पौरुषी जघन्य तीन मुहूर्त की होती है, तब मुहूर्त का कितना भाग बढ़ते बढ़ते उत्कृष्ट साढ़े चार मुहूर्त की पौरुषी होती है ? [6 उ.] हे सुदर्शन ! जब दिवस और रात्रि की पौरुषी उत्कृष्ट साढे चार मुहर्त को होती है, तब मुहर्त का एक सौ बाईसवाँ भाग घटते-घटते जघन्य पौरुषी तीन मुहूर्त की होती है, और जब जघन्य पौरुषी तीन मुहूर्त की होती है, तब मुहूर्त का एक सौ बाईसवाँ भाग बढ़ते बढ़ते उत्कृष्ट पौरुषी साढ़े चार मुहूर्त की होती है। 10. कदा णं भंते ! उक्कोसिआ प्रद्धपंचममुहुत्ता दिवसास वा रातीए वा पोरिसी भवति ? कदा बा जहन्निया तिमुत्ता विवस्स वा रातीए वा पोरिसी भवति ? सुदंसणा! जदा णं उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवति, जहन्निया दुवालसमुहुत्ता राती भवति तदा णं उक्कोसिया अद्धपंचममुहुत्ता दिवस्स पोरिसी भवति, जहन्नियातिमहत्ता रातोय पोरिसी भवति / जदा वा उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति, जहन्नए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवति तदा णं मुक्कोसिया प्रद्धपंचममुहुत्ता रातीए पोरिसी भवइ, जहन्निया तिमुहुत्ता दिवस्स पोरिसी भवइ। __ [10 प्र,] भगवन् ! दिवस और रात्रि की उत्कृष्ट साढ़े चार मुहर्त की पौरुषी कब होती है और जघन्य तीन मुहूर्त की पौरुषी कब होती है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org