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________________ ग्यारहवां शतक : उद्देशक-१०] [28-1 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ (शक्य) नहीं है। [2] से केण→णं भते ! एवं वुच्चइ लोगस्स णं एगम्मि आगासपएसे जे एगिदियपएसा जाव चिट्ठति नस्थि णं ते अन्नमन्नस्स किचि आवाहं वा जाव करेंति ? गोयमा ! जहानामए नट्टिया सिया सिंगारागार चारवेसा जाव' कलिया रंगट्ठाणंसि जणसयाउलंसि जणसयसहस्साउलंसि बत्तीसतिविधस्स नदृस्स अन्नयरं नट्टविहि उवदंसेज्जा / ते नणं गोयमा ! ते पेच्छगा तं नट्टियं अणिमिसाए दिट्ठीए सव्वओ समंता समभिलोएंति ? 'हंता, समभिलोएंति / ताओ णं गोयमा! दिट्ठीओ तंसि नट्टियसि सव्वओ समता सन्निवडियाओ ? 'हता, सन्निडियानो।' अस्थि णं गोयमा ! ताओ दिट्ठीओ तोसे नट्टियाए किंचि आबाहं वा वाबाहं वा उप्पाएंति, छविच्छेदं वा करेंति ? ___णो इणठे समठे।' सा वा नट्रिया तासि दिट्ठीणं किंचि आबाह वा वाबाहं वा उपाएति, छविच्छेदं वा करेइ ? 'णो इणठे समझें / ' ताओ वा दिट्ठीओ अन्नमन्नाए विट्ठीए किचि आबाहं वा वाबाहं वा उत्पाएंति, छविच्छेदं वा करेति ? 'णो इणठे समठे।' से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति तं चेव जाव छविच्छेदं वा न करेंति / [28-2 प्र. भगवन् ! यह किस कारण से कहा है कि लोक के एक प्राकाशप्र देश में एकेन्द्रियादि जीवप्रदेश परस्पर बद्ध यावत् सम्बद्ध हैं, फिर भी वे एक दूसरे को बाधा या व्यावाधा नहीं पहुंचाते ? अथवा अवयवों का छेदन नहीं करते ? [28-2 उ.] गौतम ! जिस प्रकार कोई शृगार का घर एवं उत्तम वेष वालो यावत् सुन्दर गति, हास, भाषण, चेष्टा, विलास, ललित संलाप निपुण, युक्त उपचार से कलित नर्तकी सैकड़ों और लाखों व्यक्तियों से परिपूर्ण रंगस्थली में बत्तीस प्रकार के नाटयों में से कोई एक नाटय दिखाती है, तो--- [प्र. हे गौतम ! वे प्रेक्षकगण (दर्शक) उस नर्तकी को अनिमेष दृष्टि से चारों ओर से देखते न हैं ? 1. 'जाव' पद सूचित पाठ-."संगयगयहसियभणियचिद्रियविलाससललियसंलावनिउणवत्तोवयारकलिय ति" / --भगवती. अ. वत्ति, पत्र 527 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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