________________ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [16] इसी प्रकार अवलोक-क्षेत्रलोक के एक आकाशप्रदेश के विषय में भी जानना चाहिए / विशेष इतना है कि वहाँ अद्धा-समय नहीं है, (इस कारण) वहाँ चार प्रकार के अरूपी अजीव हैं / 20. लोगस्स जहा अहेलोगखेत्तलोगस्स एगम्मि आगासपदेसे / [20] लोक के एक आकाशप्रदेश के विषय में भी अधोलोक-क्षेत्रलोक के एक प्राकाशप्रदेश के कथन के समान जानना चाहिए। 21. अलोगस्स णं भंते ! एगम्मि आगासपएसे० पुच्छा। गोयमा ! नो जीवा, नो जीवदेसा, तं चेव जाव अणंतेहि अगरुयलहुयगुर्गोह संजुत्ते सन्वागासस्स अगंतमागूणे। [21 प्र.] भगवन् ! क्या प्रलोक के एक आकाशप्रदेश में जीव हैं ? इत्यादि प्रश्न / [21 उ.] गौतम ! वहां जीव नहीं हैं, जीवों के देश नहीं हैं, इत्यादि पूर्ववत् जानना चाहिए; यावत् अलोक अनन्त अगुरुलघुगुणों से संयुक्त है और सर्वाकाश के अनन्तवें भाग न्यून है / विवेचन-अधोलोकादि के एक आकाशप्रदेश में जोवादि की प्ररूपणा-प्रस्तुत 5 सूत्रों (17 से 21 तक) में अधोलोक, तिर्यग्लोक, अर्श्वलोक, लोक और अलोक के एक प्राकाशप्रदेश में व के देश-प्रदेश, अजीव, अजीव के देश-प्रदेश आदि के विषय में प्ररूपणा की गई है।' त्रिविध क्षेत्रलोक-प्रलोक में द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव की अपेक्षा से जीवाजीवद्रव्य 22. [1] दव्वओ णं अहेलोगखेत्तलोए अणंता जीवदन्वा, अणंता अजीवदन्वा, अणंता जीवाजीवदव्वा / [22-1] द्रव्य से ---अधोलोक-क्षेत्रलोक में अनन्त जीवद्रव्य हैं, अनन्त अजीवद्रव्य हैं और अनन्त जीवाजीवद्रव्य हैं। [2] एवं तिरियलोयखेत्तलोए वि। [22-2] इसी प्रकार तिर्यग्लोक-क्षेत्रलोक में भी जानना चाहिए। [3] एवं उड्डलोयवेत्तलोए वि। [22-3] इसी प्रकार अवलोक-क्षेत्रलोक में भी जानना चाहिए / 23. दन्नओ गं अलोए णेवत्थि जीवदव्वा, नेवत्थि अजीवदया, नेवस्थि जीवाजीवदया, एगे अजीवदव्वस्स देसे जाव सव्वागासअणंतभागणे / [23] द्रव्य से अलोक में जीवद्रव्य नहीं, अजीवद्रव्य नहीं और जीवाजीवद्रव्य भी नहीं, किन्तु अजीवद्रव्य का एक देश है, यावत् सर्वाकाश के अनन्तवें भाग न्यून है / ... .-. -.--.- -..-.-- -- 1. वियाहपणत्ति (मुलपाठ-टिप्पण), भा. 2, पृ. 528-7.21 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org