________________ [51 ग्यारहवां शतक : उद्देशक-१०] 3. खेत्तलोए णं भंते ! कतिविहे पन्नते ? गोयमा ! तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–अहेलोयखेत्तलोए ? तिरियलोयखेत्तलोए 2 उड्डलोयखेत्तलोए 3 // [3 प्र.] भगवन् ! क्षेत्रलोक कितने प्रकार का कहा गया है ? [3 उ.] गौतम ! (वह) तीन प्रकार का कहा गया है / यथा-१-अधोलोक-क्षेत्रलोक, २--तिर्यग्लोक-क्षेत्रलोक और ३-ऊर्ध्वलोक-क्षेत्रलोक / 4. अहेलोयखेत्तलोए गं भंते ! कतिविध पन्नत्ते ? गोयमा ! सत्तविधे पन्नत्ते, तं जहा–रयणप्पमापुढविअहेलोयखेत्तलोए जाव अहेसत्तमपुढविअहेलोयखेत्तलोए / [4 प्र.] भगवन् ! अधोलोक-क्षेत्रलोक कितने प्रकार का है ? [4 उ.] गौतम ! (वह) सात प्रकार का है यथा-रत्नप्रभापृथ्वी-अधोलोक-क्षेत्रलोक, यावत् अधःसप्तमपृथ्वी-अधोलोक-क्षेत्रलोक / 5. तिरियलोयखेत्तलोए णं भंते ! कतिविधे पन्नत्ते ? गोयमा ! असंखेज्जतिविधे पन्नते, तं जहा- जंबुद्दीवतिरियलोयखेत्सलोए जाव सयंभुरमणसमुद्दतिरियलोयखेत्तलोए। [5 प्र.] भगवन् ! तिर्यग्लोक-क्षेत्रलोक कितने प्रकार का कहा गया है ? [5 उ.] गौतम ! (वह) असंख्यात प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार--जम्बूद्वीप. तिर्यग्लोक-क्षेत्रलोक, यावत् स्वयम्भूरमणसमुद्र-तिर्यग्लोक-क्षेत्रलोक / 6. उड्डलोगखेत्तलोए णं भंते ! कतिविधे पन्नत्ते ? गोयमा! पण्णरसविधे पन्नत्ते, तं जहा--सोहम्मकप्पउडलोगखेत्तलोए जाव प्रच्चयउड्डलोगों गेवेज्जविमाणउलोग० अणुत्तरविमाण० इसिपम्भारपुढविउलोगखेतलोए / [6 प्र.] भगवन् ! ऊर्ध्वलोक-क्षेत्रलोक कितने प्रकार का कहा गया है ? . [6 उ.] गौतम ! (वह) पन्द्रह प्रकार का कहा गया है। यथा-(१-१२) सौधर्मकल्पऊर्ध्वलोक-क्षेत्रलोक, यावत् अच्युतकल्प-ऊर्ध्वलोक-क्षेत्रलोक, (13) अवेयक विमान-ऊर्ध्वलोक-क्षेत्रलोक, (14) अनुत्तरविमान-ऊर्ध्वलोक-क्षेत्रलोक और (15) ईषत्प्राग्भारपृथ्वी-ऊर्ध्वलोक-क्षेत्रलोक / विवेचन-विविध क्षेत्रलोक-प्ररूपणा-प्रस्तुत चार सूत्रों (सू. 3 से 6 तक) में ऊर्व लोक, अधोलोक एवं मध्यलोक के रूप में विविध क्षेत्रलोक के अनेक प्रभेद बतलाए गए हैं। लोक और प्रलोक के संस्थान की प्ररूपणा 7. अहेलोगखेतलोए णं भंते ! किसंठिते पन्नते ? गोयमा ! तप्पागारसंठिए पन्नत्ते / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org