________________ दसमो उद्देसओ : दसवाँ उद्देशक लोग : लोक (के भेद-प्रभेद) 1. रायगिहे जाब एवं क्यासी[१] राजगृह नगर में (गौतमस्वामी ने भगवान् महावीर से) यावत् इस प्रकार पूछा---- 2. कतिविधे गं भंते ! लोए पन्नत्ते ? गोयमा ! चउब्धिहे लोए पन्नत्ते, तं जहा–दव्वलोए खेत्तलोए काललोए भावलोए / [2 प्र.] भगवन् ! लोक कितने प्रकार का है ? [2 उ.] गौतम ! लोक चार प्रकार का कहा है। यथा-(१) द्रव्यलोक, (2) क्षेत्रलोक, (3) काललोक और (4) भावलोक / विवेचन-लोक और उसके मुख्य प्रकार-धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय से व्याप्त सम्पूर्ण द्रव्यों के अाधाररूप चौदह रज्जपरिमित प्राकाशखण्ड को लोक कहते हैं। वह लोक द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से मुख्यतया 4 प्रकार का है। द्रव्यलोक-द्रव्यरूप लोक द्रव्यलोक है। उसके दो भेद-आगमतः, नोमागमतः / जो लोक शब्द के अर्थ को जानता है, किन्तु उसमें उपयुक्त नहीं है, उसे आगमत: द्रव्यलोक कहते हैं / नोप्रागमतः द्रव्यलोक के तीन भेद हैं- ज्ञशरीर, भव्यशरीर, और तद्व्यतिरिक्त / जिस व्यक्ति ने पहले लोक शब्द का अर्थ जाना था, उसके मृत शरीर को 'ज्ञशरीर द्रव्यलोक' कहते हैं। जिस प्रकार भविष्य में, जिस घट में मधु रखा जाएगा, उस घट को अभी से 'मधुघट' कहा जाता है, उसी प्रकार जो व्यक्ति भविष्य में लोक शब्द के अर्थ को जानेगा, उसके सचेतन शरीर को 'भव्यशरीर द्रव्यलोक' कहते हैं / धर्मास्तिकाय आदि द्रव्यों को 'ज्ञशरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्त द्रव्यलोक' कहते हैं। क्षेत्रलोक-क्षेत्ररूप लोक को क्षेत्रलोक कहते हैं / ऊर्वलोक, अधोलोक और तिर्यक्लोक में जितने आकाशप्रदेश हैं, वे क्षेत्रलोक कहलाते हैं। काललोक---समयादि कालरूप लोक को काललोक कहते हैं / वह समय, श्रावलिका, मुहूर्त, दिवस, अहोरात्र, पक्ष, मास, संवत्सर, युग, पल्योपम, सागरोपम, उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी, परावर्त अादि के रूप में अनेक प्रकार का है। भावलोक भावरूप लोक दो प्रकार का है-आगमतः, नोग्रागमतः / आगमतः भावलोक वह है, जो लोक शब्द के अर्थ का ज्ञाता और उसमें उपयोग वाला है / नोआगमतः भावलोक-प्रौदयिक, औपमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक एवं पारिणामिक तथा सान्निपातिक रूप से 6 प्रकार का है / ' 1. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 523 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org