________________ 52] | व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [7 प्र.) भगवन् ! अधोलोक-क्षेत्रलोक का किस प्रकार का संस्थान (आकार) कहा गया है ? [7 उ.] गौतम ! वह त्रपा (तिपाई) के आकार का कहा गया है / 8. तिरियलोगखेतलोए णं भंते ! किसंठिए पन्नते ? गोयमा ! झल्लरिसंठिए पन्नते। [8 प्र.] भगवन् ! तिर्यग्लोक क्षेत्रलोक का संस्थान (आकार) किस प्रकार का कहा गया है ? [8 उ.] गौतम ! वह झालर के आकार का कहा गया है / 9. उड्ढलोगखेत्तलोगपुच्छा / उडमुर्तिगाकारसंठिए पन्नत्ते। [6 प्र.] भगवन् ! ऊर्ध्वलोक-क्षेत्रलोक किस प्रकार के संस्थान (ग्राकार) का है ? [6 उ.] गौतम ! (वह) ऊर्ध्वमृदंग के आकार (संस्थान) का है / 10. लोए णं भंते ! किसंठिए पन्नते ? . गोयमा ! सुपइट्टगसंठिए लोए पन्नत्ते, तं जहा हेट्ठा वित्थिणे, मज्झ संखित्ते जहा सत्तमसए पढमे उद्देसए (स. 7 उ. 1 सु. 5) जाव अंतं करेति / [10 प्र.] भगवन् ! लोक का संस्थान (आकार) किस प्रकार का कहा गया है ? [10 उ.] गौतम ! लोक सुप्रतिष्ठक (श राव--सकोरे) के आकार का है ! यथा-वह नीचे विस्तीर्ण (चौड़ा) है, मध्य में संक्षिप्त (संकीर्ण-संकड़ा) है, इत्यादि सातवें शतक के प्रथम उद्देशक में कहे अनुसार जानना चाहिए / यावत्-उस लोक को उत्पन्नज्ञान-दर्शन-धारक केवलज्ञानी जानते हैं, इसके पश्चात् वे सिद्ध होते हैं, यावत् समस्त दुःखों का अन्त करते हैं / 11. अलोए गं भंते ! किसंठिए पन्नत्ते ? गोयमा ! झुसिरगोलसंठिए पन्नत्ते ? [11 प्र.] भगवन् ! अलोक का संस्थान (ग्राकार) कैसा है ? [11 उ.] गौतम ! अलोक का संस्थान पोले गोले के समान है / विवेचन तीनों लोकों, लोक एवं अलोक का आकार–प्रस्तुत 5 सूत्रों (सू. 7 से 11) में अधोलोक, मध्यलोक, ऊवलोक, लोक एवं अलोक के आकार का निरूपण किया गया है। ऊर्ध्वलोक का आकार–खड़ी मृदंग के समान है। लोक का प्राकार-शराव (सकोरे) जैसा है। अर्थात्-नीचे एक उलटा शराव रखा जाय, उसके ऊपर एक शराव सीधा रखा जाय, फिर उसके ऊपर एक शराव उलटा रखा जाए, इस प्रकार का जो आकार बनता है. वह लोक का प्राकार है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org