________________ ग्यारहवां शतक : उद्देशक-९] उपकरण एक ओर डालकर पंचमुष्टिक लोच करके भगवान् से निग्रंथप्रव्रज्याग्रहण एवं (4) ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवं तप की आराधना से मुक्तिप्राप्ति / ' सिद्ध होने वाले जीवों का संहननादिनिरूपण 33. भंते ! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदति, नमसति, वं० 2 एवं वयासी-- जीवा णं भंते ! सिज्झमाणा कयरम्मि संघयणे सिझंति ? __ गोयमा ! वइरोसभणारायसंघयणे सिझति एवं जहेव उववातिए तहेव 'संघयणं संठाणं उच्चत्तं आउयं च परिवसणा' एवं सिद्धिगंडिया निरवसेसा भाणियम्वा जाव 'प्रध्वाबाहं सोक्खं अणुहुंती सासयं सिद्धा'। सेवं भंते ! सेवं भंते ! तिः / // एक्कारसमे सए नवमो उद्देसो समत्तो // 11. 9 // [33 प्र.] श्रमण भगवान महावीर को वन्दन-नमस्कार करके भगवान् गौतम ने इस प्रकार पूछा-'भगवन् ! सिद्ध होने वाले जीव किस संहनन से सिद्ध होते हैं ?' [33 उ.] गौतम ! वे वज्रऋषभनाराचसंहनन से सिद्ध होते हैं; इत्यादि औषपातिकसूत्र के अनुसार संहनन, संस्थान, उच्चत्व (अवगाहना), आयुष्य, परिवसन (निवास), इस प्रकार सम्पूर्ण सिद्धिगण्डिका तक, यावत् सिद्ध जोव अव्याबाध शाश्वत सुख का अनुभव करते हैं; यहाँ तक कहना चाहिए। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरण करते हैं। विवेचन--सिद्धों के योग्य संहननादि निरूपण-नौवें उद्देशक के इस अन्तिम सूत्र में सिद्ध होने वाले जीवों के योग्य संहनन का प्रतिपादन करके संस्थान, अवगाहना, आयुष्य और परिवसन आदि के लिए औपपातिकसूत्र का अतिदेश किया गया है / सिद्धों के संहनन प्रादि इस प्रकार हैं--- संहनन-वज्रऋषभनाराचसंहनन वाले सिद्ध होते हैं / संस्थान छह प्रकार के संस्थानों में से किसी एक संस्थान से सिद्ध होते हैं। उच्चत्व-सिद्धों की (तीर्थंकरों की अपेक्षा) अवगाहना जघन्य सात रत्नि (मुडहाथ) प्रमाण और उत्कृष्ट 500 धनुष होती है। आयुष्य-सिद्ध होने वाले जीव का आयुष्य जघन्य कुछ अधिक 8 वर्ष का, उत्कृष्ट पूर्वकोटिप्रमाण होता है। -...-. .---.---- 1. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण), भा. 2, पृ. 525-526 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org