________________ [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र पि, सरसाइं पि अरसाइं पि, सफासाई पि अफासाई पि, अन्नमन्तबद्धाइं अन्तमन्नपुट्ठाई जाव घडताए चिट्ठति ? हंता, अस्थि। [22 प्र.] भगवन् ! क्या जम्बूद्वीप नामक द्वीप में वर्ण सहित और वर्णरहित, गन्धसहित और गन्धरहित, सरस और अरस, सस्पर्श और अस्पर्श द्रव्य, अन्योन्यबद्ध तथा अन्योन्यस्पृष्ट यावत् अन्योन्यसम्बद्ध हैं ? [22 उ.] हाँ, गौतम ! हैं। 23. अस्थि णं भंते ! लवणसमुद्दे दन्वाई सवण्णाई पि अवण्णाई पि, सगंधाई पि अगंधाई पि, सरसाइं पि प्ररसाइं पि, सफासाई पि अफासाइं पि, अन्नमनबद्धाइं अन्नमन्नपुट्ठाई जाव घडत्ताए चिट्ठति ? हंता, अस्थि / [23 प्र.] भगवन् ! क्या लवणसमुद्र में वर्णसहित और वर्णरहित, गन्धसहित और गन्धरहित, रसयुक्त और रसरहित तथा स्पर्शयुक्त और स्पर्शरहित द्रव्य, अन्योन्यबद्ध तथा अन्योन्यस्पृष्ट यावत् अन्योन्यसम्बद्ध हैं ? [23 उ.] हाँ, गौतम ! हैं। 24. अस्थि णं भंते ! धातइसंडे दीवे दवाई सवन्नाई पि० / [24 प्र. भगवन् ! क्या धातकीखण्डद्वीप में सवर्ण-अवर्ण आदि द्रव्य यावत् अन्योन्य [24 उ.] हाँ, गौतम ! हैं। 25. एवं जाव सयंभुरमणसमुद्दे जाव हंता, अस्थि / [25 प्र.] इसी प्रकार यावत् स्वयम्भूरमणसमुद्र में भी यावत् द्रव्य, अन्योन्यसम्बद्ध हैं ? [25 उ.] हाँ, हैं। 26. तए णं सा महतिमहालिया महच्चपरिसा समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतियं एयमट्ठ सोच्चा निसम्म हट्टतुटु० समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति वं० 2 जामेव दिसं पाउम्भूता तामेव दिसं पडिगया। [26] इसके पश्चात् वह अत्यन्त-महती विशाल परिषद् श्रमण भगवान् महावीर से उपयुक्त अर्थ (बात) सुनकर और हृदय में धारण कर हर्षित एवं सन्तुष्ट हुई और श्रमण भगवान् महावीर को वन्दना व नमस्कार करके जिस दिशा से आई थी, उसी दिशा में लौट गई। विवेचन द्वीप-समुद्रगत द्रव्यों में वर्णादि की परस्परसम्बद्धता–प्रस्तुत पांच सूत्रों (22 से 26 तक) में जम्बूद्वीप, लवणसमुद्र आदि समस्त द्वीप-समुद्रों में वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्शादि से रहित और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org