________________ ग्यारहवां शतक : उद्देशक-१ ] [17 [25 उ.] गौतम ! वे पाहारसंज्ञा के उपयोग वाले हैं, इत्यादि (लेश्याद्वार के समान) अस्सी भंग कहना चाहिए / 26. ते णं भंते ! जीवा कि कोहकसायो, माणकसायो, मायाकसायी, लोभकसायी ? गोयमा ! असोती भंगा। [दारं 21] / [26 प्र. भगवन् ! वे उत्पल के जीव क्रोधकषायी है, मानकषायी हैं, मायाकषायी हैं अथवा लोभकषायी हैं ? [26 उ.] गौतम ! यहाँ भी पूर्वोक्त 80 भंग कहना चाहिए। विवेचन-संज्ञाद्वार और कषायद्वार-उत्पलजीवों में चार संज्ञाओं और चार कषायों के लेश्याद्वार के समान 80 भंग होते हैं ! 22 से 25 तक-स्त्रीवेदादि-वेदक-बन्धक-संज्ञी-इन्द्रिय द्वार 27. ते गं भंते ! जीवा कि इस्थिवेदगा, पुरिसवेदगा, नपुसगवेदगा? गोयमा ! नो इत्थिवेदगा, नो पुरिसवेदगा, नपुसकवेदए वा नपुंसगवेदगा वा / [दार 22] / [27 प्र.] भगवन् ! वे उत्पल के जीव स्त्रीवेदी हैं, पुरुषवेदी हैं या नपुसकवेदी हैं ? 27 उ.) गौतम ! वे स्त्रीवेद वाले नहीं, पुरुषवेद वाले भी नहीं, परन्तु एक जीव भी नपु सकवेदो है और अनेक जीव भी नपुसकवेदी हैं / 28. ते णं भंते ! जोवा कि इस्थिवेदबंधगा, पुरिसवेदबंधगा, नपुंसगबेदबंधगा? गोयमा ! इत्थिवेदबंधए वा पुरिसवेदबंधए वा नपुंसगवेदबंधए वा, छन्वीसं भंगा। [दारं 23] / 28 प्र.] भगवन् ! वे उत्पल के जीव स्त्रीवेद के बन्धक हैं, पुरुषवेद के बन्धक हैं या नपुसकवेद के बन्धक हैं ? [28 उ.] गौतम ! वे स्त्रीवेद के बन्धक हैं, या पुरुषवेद के बन्धक हैं अथवा नपुसकवेद के बन्धक है / यहाँ उच्छ्वासद्वार के समान 26 भंग कहने चाहिए। -22 वाँ, 23 वाँ द्वार] 29. ते णं भंते ! जीवा कि सण्णी, असणी ? गोयमा! नो सण्णी, असण्णो वा असणिणो वा / [दारं 24] / [26 प्र.] भगवन् ! वे उत्पल के जीव संज्ञी हैं या असंज्ञी ? [26 उ.] गौतम ! वे संज्ञी नहीं, किन्तु एक जीव भी असंज्ञी है और अनेक जीव भो असंज्ञी हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org