________________ ग्यारहवां शतक : उद्देशक-१] [15 परन्तु अपर्याप्त अवस्था में जीव अनुच्छ्वासक-निःश्वासक होता है। अतः उच्छ्वासक-निःश्वासक द्वार के 26 भंग होते हैं / वे इस प्रकार--- असंयोगी 6 भंग 1, एक उच्छ्वासक 2. एक नि:श्वासक 3. एक अनुच्छ्वासक-निःश्वासक 4. बहुत उच्छ्वासक 5. बहुत निःश्वासक 6. बहत अनच्छ्वासक-नि:श्वासक द्विकसंयोगी 12 भंग 1. ए. उ., ए. नि. 2. ए. उ., ब. ति. उ., ए. नि. 4. ब. उ., व. नि. 5. ए. उ., ए. नोउ 6. ए. उ., ब. नोउ. 7. ब. उ., ए. नोउ. 8. ब. उ., व. नोउ. 6. ए. नि., ए. नोड. 10. ए. नि., ब. नोउ. 11. ब. नि. ए. नोउ. / 12. ब. नि., ब. नोउ. त्रिकसंयोगी 8 भंग أ م 1. ए. उ., ए. नि., ए. नोउच्छ्वासक निश्वासक 2. ए. उ., ए. नि., ब. नोउ. . ए. उ., व. नि., ए. नोउ० 4. ए. उ., ब. नि., ब नोउ० 5. ब. उ., ए. नि., ए. नोउ० 6. ब. उ., ए. नि., ब. नोउ० 7. ब. उ., ब. नि., ए. नोउ० 8. व. उ., ब. नि. ब. नोउ० لله / __ आहारक-अनाहारक--विग्रहगति में जीव अनाहारक होता है, शेष समय में आहारक / इस लिए आहारक-अनाहारक के 8 भंग कहे गए हैं। वे पूर्ववत् समझ लेने चाहिए।' १७-१८-१९-विरतिद्वार, क्रियाद्वार और बन्धकद्वार 22. ते णं भंते ! जीवा कि विरया, अविरया, विरयाविरया ? गोयमा ! नो विरया, नो विरयाविरया, अविरए वा अविरता वा / [दारं 17] / 122 प्र.] भगवन् ! क्या वे उत्पल के जीव विरत (सर्वविरत) हैं, अविरत हैं या विरताविरत [22 उ.] गौतम ! वे उत्पल-जीव न तो सर्वविरत हैं और न विरताविरत हैं, किन्तु एक जीव अविरत है अथवा अनेक जीव भी अविरत है। [-सत्रहवाँ द्वार] 1. (क) भगवती. अ. वत्ति, पत्र 512-513 / (ख) भगवती. विवेचन (पं. घेवरचन्दजी), भा. 4, पृ. 1856 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org