________________ 14] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 16. प्र.| भगवन् ! उन (उत्पल के) जीवों का शरीर कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और कितने स्पर्श वाला है ? 16 उ.] गौतम ! उनका (शरीर) पांच वर्ण, पांच रस, दो गन्ध और आठ स्पर्श वाला है। जीव स्वयं वर्ण, गन्ध, रम और स्पर्श-रहित है। -चौदहवाँ द्वार] 20. ते णं भंते ! जीवा कि उस्सासा, निस्सासा, नोउस्सासनिस्सासा? गोयमा ! उस्सासए वा 1, निस्सासए वा 2, नोउस्सासनिस्सासए वा 3, उस्सासगा वा 4, निस्सासगा वा 5, नोउस्सासनिस्सासगा वा 6, अहवा उस्सासए य निरसासए य 4 (7-10), अहवा उस्सासए य नोउस्सासनिस्सासए य 4 (11-14), अहवा निस्सासए य नोउस्सासनीसासए य 4 (15-18), अहवा उस्सासए य नीसासए य नोउस्सासनिस्सासए य-अट्ठ भंगा (19-26), एए छन्वीसं भंगा भवंति / [दारं 15] / 20 प्र.] भगवन् ! वे (उत्पल के) जीव उच्छ्वासक हैं, नि:श्वासक हैं, या उच्छ्वासकनिःश्वासक हैं ? 20 उ.] गौतम ! (उनमें से) १-कोई एक जीव उच्छवासक है, या २--कोई एक जीव निःश्वासक है, अथवा ३---कोई एक जीव अनुच्छ्वासक-निःश्वासक है, या ४-अनेक जीव उच्छ्वासक हैं, ५---या अनेक जीव निःश्वासक हैं, अथवा ६–अनेक जीव अनुच्छ्वासक-निःश्वासक हैं, (7-10) अथवा एक उच्छ्वासक है और एक नि:श्वासक है; इत्यादि / (11-14) अथवा एक उच्छ्वासक और एक अनुच्छ्वासक-निःश्वासक है; इत्यादि / (15-18) अथवा एक निःश्वासक और एक अनुच्छ्वासक-निःश्वासक है, इत्यादि। (16-26) अथवा एक उच्छ्वासक, एक निःश्वासक और एक अनुच्छ्वासक-निःश्वासक है इत्यादि पाठ भंग होते हैं। ये सब मिलकर 26 भंग होते [-पन्द्रहवाँ द्वार] 21. ते णं भंते ! जीवा कि आहारगा, अणाहारगा? गोयमा ! ' प्राहारए वा अणाहारए वा, एवं अट्ठ भंगा। [दारं 16] / / 21 प्र.] भगवन् ! वे उत्पल के जीव पाहारक हैं या अनाहारक हैं ? [21 उ.] गौतम ! (वे सब अनाहारक नहीं; ) कोई एक जीव प्राहारक है, अथवा कोई एक जोव अनाहारक है; इत्यादि आठ भंग कहने चाहिए। [-सोलहवाँ द्वार] विवेचन-उत्पलजीवों के वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श-उत्पल के शरीर वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाले हैं, किन्तु उनका प्रात्मा (जीव) वर्णादि से रहित है। क्योंकि वह अमूर्त है। उच्छवास-निःश्वास–पर्याप्त अवस्था में सभी जीवों के उच्छ्वास और निःश्वास होते हैं, 1. अधिक पाठ –'नो अणाहारगा।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org