________________ ध्यारहवां शतक : उद्देशक-१] प्र.] भगवन् ! वे (उत्पल के) जीव ज्ञानावरणीय कर्म के बन्धक हैं या प्रबन्धक ? उ. गौतम ! वे ज्ञानावरणीय कर्म के प्रबन्धक नहीं; किन्तु एक जीव बन्धक है, अथवा अनेक जीव बन्धक हैं। इस प्रकार (आयुष्यकर्म को छोड़ कर) यावत् अन्तराय कर्म (के बन्धकप्रबन्धक) तक समझ लेना चाहिए। [प्र. विशेषतः (वे जीव) प्रायुष्य कर्म के बन्धक हैं, या प्रवन्धक ? ; यह प्रश्न है / उ. | गौतम ! (1) उत्पल का एक जीव बन्धक है, (2) अथवा एक जीव प्रबन्धक है, (3) अथवा अनेक जीव बन्धक हैं, (4) या अनेक जीव प्रबन्धक हैं, (5) अथवा एक जीव बन्धक है, और एक प्रबन्धक है, (6) अथवा एक जीव बन्धक और अनेक जीव प्रबन्धक हैं, (7) या अनेक जीव बन्धक हैं और एक जीव अबन्धक है, एवं (8) अथवा अनेक जीव बन्धक हैं और अनेक जीव प्रबन्धक हैं। इस प्रकार ये पाठ भंग होते हैं / ---पंचम द्वार 10. ते णं भंते ! जोवा णाणावरणिज्जस्स कम्मस्स कि वेदगा, अवेदगा? गोयमा! नो अवेदगा, वेदए वा घेदगा वा / एवं जाव अंतराइयस्स। 110 प्र. भगवन् ! वे (उत्पल के) जीव ज्ञानावरणीय कर्म के वेदक हैं या अवेदक ? |10 उ. गौतम ! वे जीव अवेदक नहीं, किन्तु या तो (एक जीव हो तो) एक जीव वेदक है और (अनेक जीव हों तो), अनेक जीव वेदक हैं। इसी प्रकार यावत् अन्तराय कर्म (के वेदकअवेदक) तक जानना चाहिए। 11. ते णं भंते ! जीवा कि सातावेदगा, असातावेदगा? गोयमा! सातावेदए वा, असातावेयए था, अट्ठ भंगा। [दारं 6] / 111 प्र.] भगवन् ! वे (उत्पल के) जीव सातावेदक हैं या असातावेदक ? [11 उ.] गौतम ! एक जीव सातावेदक है, अथवा एक जीव असातावेदक है, इत्यादि पूर्वोक्त आठ भंग जानने चाहिए। [-छठा द्वार 12. ते णं भंते ! जीवा नाणावरणिज्जस्त कम्मस्स कि उदई, अणुदई ? गोयमा! नो अणुदई, उबई वा उदइणो वा / एवं जाव अंतराइयस्स / [दारं 7] / [12 प्र. भगवन् ! वे (उत्पल के) जीव ज्ञानावरणीय कर्म के उदय वाले हैं या अनुदय वाले ? [12 उ.] गौतम ! वे जीव अनुदय वाले नहीं हैं, किन्तु (एक जीव हो तो) एक जीव उदय वाला है, अथवा (अनेक जीव हों तो) वे (सभी) उदय वाले हैं। इसी प्रकार यावत् अन्तराय कर्म तक समझ लेना चाहिए। सातवाँ द्वार] 13. ते णं भंते ! जीवा नाणावरणिज्जस्स कम्मरस कि उदीरगा, अणुदीरगा? गोयमा ! नो अणुदीरगा, उदीरए वा उदीरगा वा। एवं जाव अंतराइयस्त / नवरं वेदणिज्जाउएसु अट्ट भंगा। [दारं 8] / |13 प्र. भगवन् ! वे जीव ज्ञानावरणीय कर्म के उदीरक हैं या अनुदीरक ? [13 उ.] गौतम ! वे अनुदीरक नहीं; किन्तु (यदि एक जीव हो तो) एक जीव उदीरक है, अथवा (यदि अनेक जीव हों तो) अनेक जीव उदीरक हैं / इसी प्रकार यावत् अन्तराय कर्म (के उदी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org