________________ 740 729, अन्यतीथिकों द्वारा श्रमण निर्ग्रन्थों पर हिंसापरायणता, असंयतता एवं एकान्त बालत्य के आक्षेप का गौतम स्वामी द्वारा समाधान. भगवान द्वारा उक्त यथार्थ उत्तर की प्रशंसा 629, छद्मस्थ मनुष्य द्वारा परमाण द्विप्रदेशिकादि को जानने और देखने के सम्बन्ध में प्ररूपणा 730, अवधिज्ञानी, परमावधिज्ञानी और केवली द्वारा परमाण से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक जानने-देखने के सामर्थ का निरूपण 734. नवम उद्देशक : नरयिकादि चौवीस दण्डकों में भव्यद्रव्यमबंधित प्रश्न का यथोचित युक्तिपूर्वक समाधान 736, चौबीस दंडकों में भव्य-द्रव्यनै रयिकादि की स्थिति का निरूपण 738. दशम उद्देशक : भावितात्मा अनगार के लब्धिसामर्थ्य से ग्रसि-क्षरधारा-अवगाहनादि का अतिदेशपूर्वक निरूपण 740, परमाण द्विप्रदेशिक प्रादि स्कन्ध तथा वस्ति का वायुकाय से परस्पर स्पर्शास्पर्श निरूपण 741, सात नरक, बारह देवलोक, पांच अनुतरविमान तथा ईषत्पारभारा पृथ्वी के नीचे परस्पर बद्धादि पुदगल द्रव्यों का निरूपण 742, वाणिज्य ग्रामनिवासी सोमिल बाह्मण द्वारा पूछे गए यात्रादि संबंधी चार प्रश्नों का भगवान् द्वारा समाधान 744, सरिसब-भक्ष्या भक्ष्य विषयक सोमिल-प्रश्न का भगवान् द्वारा यथोचित उत्तर 747, मास एवं कुलत्था के भक्ष्याभक्षय-विषयक सोमिल प्रश्न का भगवान् द्वारा समाधान 748, सोमिल द्वारा पूछे गए एक, दो अक्ष्य, अव्यय, अवस्थित तथा अनेक भूत-भावभविक आदि तात्त्विक प्रश्नों का समाधान 750, मोमिल द्वारा श्रावकधर्म का स्वीकार 751, सोमिल के प्रबजित होने आदि के सम्बन्ध में गौतम के प्रश्न का भगवान द्वारा समाधान 751. उन्नीसवां शतक 754 प्रथम उद्देशक : प्रज्ञापनासूत्र के अतिदेशपूर्वक लेश्यातत्त्व निरूपण 756, द्वितीय उद्देशक : एक लेश्या वाले मनुष्य से दूसरी लेश्या वाले गर्भ की उत्पत्ति विषयक निरूपण 758, तृतीय उद्देशक : 759 759 बारह द्वारों के माध्यम से पृथ्वीकायिक जीव से संबंधित प्ररूपणा 759, बारह द्वारों के माध्यम से अप-तेजो-बाय-बनस्पतिकायिकों में प्ररूपणा 764, एकेन्द्रिय जीवों की जघन्य-उत्कृष्ट अवगाहना की अपेक्षा अल्पबहत्व 765, एकेन्द्रिय जीवों में सूक्ष्म-सूक्ष्मतरनिरूपणा 767, एकेन्द्रिय जीवों में बादर-बावरतरतिरूपण 768, पृथ्वीकाय की महाकायता का निरूपण 369, पृथ्वीशरीर की महती शरीरावगाहना 770, एकेन्द्रिय जीवों की अनिष्टतर वेदनानुभूति का सदृष्टान्त निरूपण 772. [27] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org