________________ 782 785 चतुर्थ उद्देशक : महाश्रव नारकों में महारवादि पदों की प्ररूपमा 774, असुरकमारों से लेकर वैमानिकों तक महास बादि चारों पदों की प्ररूपणा 777. पंचम उद्देशक : चरम (परमवेदनादि) चरम और अचरम आधार पर चौवीस दण्डकों में महाकर्मत्व-अल्पकर्मत्व प्रादि का निरूपण 771, वेदनाः दो प्रकार तथा उसका चौबीस दण्डकों में निरूपण 781. ठा उद्देशक : द्वीप (समुद्र-वक्तव्यता) ___ जीवाभिगमसूत्रनिरिट द्वीप-समुद्र संबंधी वक्तव्यता 782. सप्तम उद्देशक : भवन (विमानावास संबंधी) चविध देवों के भवन-नगर-विमानावास-संख्यादि निरूपण 785. अष्टम उद्देशक : निवृत्ति जीवनिर्वत्ति के भेदाभेद का निरूपण 788, कर्म. शरीर इन्द्रिय प्रादि 18 बोलों की निति के भेदसहित चौवीस दण्डकों में निरूपण 789. नौवाँ उद्देशक : करण द्रव्यादि पंचविध करण और नैरयिकादि में उनकी प्ररूपणा 797, शरीरादि करणों के भद और चौवीस दण्डकों में उनकी प्ररूपणा 798, प्राणातिपात-करण : पांच भेद, चौवीस दण्डका में निरूपण 799, पुद्गलकरण: भेद-प्रभेद-निरूपण 699 दसवाँ उद्देशक : वाण व्यन्तदेरव बाणच्यन्तरी में सामाहारादि-हार-निरूपण 801 ७५द Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org