________________ चतुर्य उद्देशक : प्राणातिपात जीव और अजीव द्रव्यों में से जीवों के लिए परिभोग्य-अपरिभोग्य द्रव्यों का निरूपण 691, कषाय : प्रकार तथा तत्सम्बद्ध कार्यों का कषायपद के अतिदेशपूर्वकनिरूपण 693, युग्म : . कृतयुग्मादि चार और स्वरूप 693, चौवीस दण्डक, सिद्ध और स्त्रियों में कृतयुग्मादिराशिप्ररूपणा 694, अन्ध कवह्नि जीवों में अल्प बहुत्व-परिमाणनिरूपण 196 पंचम उद्देशक : असुर एक निकाय के दो देवों में दर्शनीयता-प्रदर्शनीयता आदि के कारणों का निरूपण 798, चौबीस दण्डकों में स्वदण्डकवर्ती दो जीवों में महाकर्मत्व-अल्पकर्मत्वादि के कारणों का निरूपण 700, चौवीस दण्डकों में वर्तमानभव और ग्रामामीभव की अपेक्षा प्रायुष्यवेदन का निरूपण 401, चतुर्विध देवनिकायों में देवों की स्वेच्छानुसार विकर्वणाकरण-प्रकरण सामर्थ्य के कारणों का निरूपण 702 छट्ठा उद्देशक : गुड़ (आदि के वर्णादि) फाणित-गुड़, भ्रमर, शुक-पिच्छ, रक्षा, मंजीठ आदि पदार्थों में व्यवहार-निश्चयनय की दृष्टि से वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्श-प्ररूपणा 704, परमाण पदगल एवं द्विप्रदेशी स्कन्ध आदि में वर्ण-गन्ध-रस स्पर्शनिरूपण 705 708 सप्तम उद्देशक : केवली केवली के यक्षाविष्ट होने तथा दो सावध भाषाएं बोलने के अन्यतीथिक आक्षेप का भगवान् द्वारा निराकरणपूर्वक यथार्थ समाधान 701, उपधि एवं परिग्रह : प्रकार त्रय तथा नैरयिकादि में उपधि एवं परिग्रह की यथार्थ प्ररूपणा 710, प्रणिधान : तीन प्रकार का नैरथिकादि में प्रणिधान को प्ररूपणा 712, दुष्प्रणिधान एवं सुप्रणिधान के तीन-तीन भेद तथा नैरयिकादि में दुष्प्रणिधान-सुप्रणिधान-प्ररूपणा 713, अन्यतीथिकों द्वारा भगत्प्ररूपित प्रस्तिकाय के विषय में पारस्परिक जिज्ञासा 614, राजगृह में भगवत्पदार्पण सुनकर मद्र क श्रावक का उनके दर्शनवन्दनार्थ प्रस्थान 614, मद्र क को भगवद्दर्शनार्थ जाते देख अत्यतीथिकों को उससे पञ्चास्तिकाय सम्बन्धी चर्चा करने की तैयारी, उनके प्रश्न का मद्रक द्वारा अकाट्य युक्तिपूर्वक उत्तर 715, मद्रक द्वारा अत्यतीथिकों को दिये गए युक्तिसंगत उत्तर की भगवान् द्वारा प्रशंसा, मद्र क द्वारा धर्मश्रवण करके प्रतिगमन 619, गौतम द्वारा पूछे गए मद्रक की प्रव्रज्या एवं मुक्ति से सम्बद्ध प्रश्न का भगवान् द्वारा समाधान 720, महद्धिक देवों द्वारा संग्राम निमित्त सहम्ररूपविकुर्वणा सम्बन्धी प्रश्नों का समाधान 721, उन छिन्न शरीरों के अन्तर्गतभाग को शस्त्रादि द्वारा पीडित करने की असमर्थता 721, देवासुर-संग्राम में प्रहरण-विकुर्वणा-निरूपण 722, महद्धिक देवों का लवणसमुद्रादि तक चक्कर लगाकर पाने का सामर्थ्य-निरूपण 723 आठवां उद्देशक : अनगार भावितारमा अनगार के पैर के नीचे दबे कुक्टादि के कारण ईर्यापथिक क्रिया का सकारण निरूपण 728, भगवान् का जनपद-विहार, राजगृह में पदार्पण और गुणशील चैत्य में निवास [26] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org