________________ 637 638 639 641 नौवाँ उद्देशक : (ऊर्ध्व लोकस्थ) अप्कायिक सौधर्मकल्प में मरणसमुद्घात करके सप्त नरकादि में उत्पन्न होने योग्य प्रकायिक जीव की उत्पत्ति और पुद्गल ग्रहण में पहले क्या, पीछे क्या ? 636 दसवाँ उद्देशक : वायुकायिक (वक्तव्यतर) रत्नप्रभा में मरणसमुद्घात करके सौधर्मकल्प में उत्पन्न होने योग्य वायुकायिक जीव पहले उत्पन्न होते हैं या पहले पुद्गल ग्रहण करते हैं ? 637 ग्यारहवाँ उद्देशक : (ऊर्ध्ववायुकायिक) सौधर्मकल्प में मरणसमुद्घात करके सप्त नरकादि पृथ्वियों में उत्पन्न होने योग्य वायुकाय की उत्पत्ति और पुद्गलग्रहण में प्रथम क्या ? 638 बारहवाँ उद्देशक ; एकेन्द्रिय जीवों में आहारादि की समता-विषमता एकेन्द्रिय जीवों में समाहार आदि सप्तद्वार निरूपण 639, एकेन्द्रियों में लेश्या की तथा लेश्या एवं ऋद्धि की अपेक्षा से अल्पबहुत्व की प्ररूपणा 639 लेरहवा उद्देशक : नाग (कुमार संबंधी वक्तव्यता) नागकुमारों में समाहारादि सप्त द्वारों की तथा लेश्या की अपेक्षा से अल्पबहत्वप्ररूपणा 641. चौवाँ उद्देशक : सुवर्ण (कुमार संबंधी वक्तव्यता) सुवर्णकुमारों में समाहार आदि सप्त द्वारों की तथा लेश्या की अपेक्षा अल्पबहुत्व की प्ररूपणा 642. पन्द्रहवाँ उद्देशक : विद्य त्कुमार (संबंधी वक्तव्यता) विद्युत्कुमारों में समाहार आदि की एवं लेश्या की अपेक्षा अल्पबहुत्व की प्ररूपणा 643. सोलहवाँ उद्देशक : वायुकुमार (संबंधी बक्तव्यता) वायुकुमारों में समाहारादि सप्त द्वारों तथा लेश्या की अपेक्षा अल्पबहुत्व प्ररूपणा 644. सत्तरहवाँ उद्देशक : अग्निकुमार (संबंधी वक्तव्यता) अग्निकुमारों में समाहारादि तथा लेश्या एवं अल्पबहुत्यादि प्ररूपणा 644. अठारहवां शतक प्राथमिक उद्देशकपरिचय 646, अठारहवें शतक के उद्देशकों का नामनिरूपण 648. प्रथम उद्देशक : प्रथम प्रथम-अप्रथम 649, जीव, चौवीस दण्डक और सिद्ध में जीवत्व-सिद्धत्व की अपेक्षा प्रथमत्वअप्रथमत्व 649, जीव, चौवीस दण्डक और सिद्धों में पाहारकत्व-अनाहारकत्व की अपेक्षा से प्रथमत्व-अप्रथमत्व का निरूपण 650. भवसिद्धिक, अभवसिद्धिक तथा नोभवसिद्धिक-नोप्रभव 642 644 649 [ 24 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org