________________ वक्ष के मूल कन्द आदि को हिलाने से संबंधित जीवों को लगने वाली क्रिया 604, शरीर, इन्द्रिय और योग : प्रकार तथा इनके निमित्त से लगने वाली क्रिया 605, षडविध भावों का अनुयोगद्वार के प्रतिदेशपूर्वक निरूपण 697 609 द्वितीय उद्देशकः संजय संयत आदि जीवों के तथा चौवीस दण्डकों के सयुक्तिक धर्म, अधर्म एवं धर्माधर्म में स्थित होने की चर्चा-विचारणा 609, अन्यतीथिकमत के निराकरणपूर्वक श्रमणादि में, जीवों में तथा चौवीस दंडकों में बाल, पण्डित और बाल-पण्डित की प्ररूपणा 611, प्राणातिपात आदि में वर्तमान जीव और जीवात्मा को भिन्नता के निराकरणपूर्वक जैनसिद्धान्तसम्मत जीव और आत्मा की कथंचित अभिन्नता का प्रतिपादन 613, रूपी अरूपी नहीं हो सकता, न अरूपी रूपी हो सकता है 615 तृतीय उद्देशकः शैलेशी 618 शैलेशी अवस्थापन्न अनगार में परप्रयोग के बिना एजनादि-निषेध 618, एजना के पांच भेद 618, द्रव्यैजनादि पांच एजनाओं की चारों गतियों की रष्टि से प्ररूपणः 619, चलना और उसके भेद-प्रभेदों का विरूपण 620, शरीरादि-चलना के स्वरूप का सयुक्तिक निरूपण 621, संवेग, निर्वेदादि उनचास पदों का अन्तिम फल-सिद्धि 623 625 630 चतुर्थ उद्देशकः क्रिया (ग्रादि से सम्बंधित चर्चा) जीव और चौवीस दण्डकों में प्राणातिपात ग्रादि पाँच क्रियाओं की प्रारूपणा 625, समय, देश और प्रदेश की अपेक्षा से जीव और चौवीस दण्डकों में प्राणातिपातादिक्रियानिरूपण 627, जीव और चौवीस दण्डकों में दुःख, दुःखवेदन, वेदना-वेदन का प्रात्मकृतत्वनिरूपण ६२पंचम उद्देशकः ईशानेन्द्र (की सुधर्मा सभा) ईशानेन्द्र की सुधर्मा सभा का स्थानादि की दृष्टि से निरूपण 630 छठा उद्देशक : पृथ्वीकायिक (मरणसमुद्घात) मरणसमुद्घात करके सौधर्म कल्प में उत्पन्न होने योग्य पृथ्वीकायिक जीवों की उत्पत्ति एवं पुदगलग्रहण में पहले क्या, पीछे क्या ? 631 634 सातवा उ शक : पृथ्वीकायिक सौधर्मकल्पादि में मरणसमुद्घात द्वारा सप्त नरकों में उत्पन्न होने योग्य पृथ्वी कायिक जीव को उत्पत्ति और पुद्गलग्रहण में पहले क्या, पीछे क्या ? 634 अष्टम उद्देशक : (अधस्तन) अपकायिकसंबंधी रत्नप्रभा में मरणसमुदघात करके सौधर्मकल्पादि में उत्पन्न होने योग्य अपकायिक जीव की उत्पत्ति और पुद्गलग्रहण में पहले क्या, पीछे क्या ? 635 [23] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org