________________ 580 581 स्थावस्था को अन्तिम रात्रि में दीखे 10 स्वप्न और उनका फल 572, एक-दो भव में मुक्त होने वाले व्यक्तियों को दिखाई देने वाले 14 प्रकार के स्वप्नों का संकेत 575, गन्ध के पुद्गल बहते हैं 578 सातवाँ उद्देशक : उपयोग प्रज्ञापनासूत्र--अतिदेशकपूर्वक उपयोग के भेद-प्रभेद 580. अष्टम उद्देशक : लोक लोक के प्रमाण का तथा लोक के विविध चरमान्तों में जीवा-जीवादि का निरूपण 581, नरक से लेकर वैमानिक एवं ईषत-प्रारभार तक पूर्वादि चरमान्तों में जीवाजीवादि का निरूपण 584, वष्टिनिर्णयार्थ करादि के संकोचन-प्रसारण में लगने वाली क्रियाएँ 587, महद्धिक देव का लोकान्त में रहकर अलोक में अवयवसंकोचन-प्रसारण असामर्थ्य 588 नौवाँ उद्देशक : बलि (वैरोचनेन्द्रसभा) बलि-वैरोचनेन्द्रसभा की सुधर्मा सभा से संबंधित वर्णन 590 दसवाँ उद्देशक : अवधिज्ञान प्रज्ञापनासूत्र के अतिदेशपूर्वक अवधिज्ञान का वर्णन 592 ग्यारहवाँ उद्देशक : द्वीपकुमार संबंधी वर्णन द्वीपकुमार देवों की पाहार, श्वासोच्छवासादि की समानता-असमानता का वर्णन 593, द्वीपकुमारों में लेश्या की तथा लेश्या एवं ऋद्धि के अल्पबहुत्व को प्ररूपणा 593 बारहवां उद्देशक : उदधिकुमार संबंधी वक्तव्यता उदधिकुमारों में पाहारादि की समानता-असमानता का निरूपण 595 तेरहवाँ उद्देशक : दिशाकुमार संबंधी वक्तव्यता दिशाकुमारों में प्राहारादि की समानता-असमानता संबंधी वक्तव्यता 596 चौदहवां उद्देशकः स्तनितकुमार संबंधी वक्तव्यता स्तनितकुमारों में ग्राहारादि की समानता-असमानता संबंधी वक्तव्यता 597 592 595 596 597 सत्तरहवाँ शतक प्राथमिक उद्देशकपरिचय 598, सत्तरहवें शतक का मंगलाचरण 600, उद्देशकों के नामों की प्ररूपणा 600 601 प्रथम उद्देशकः कुजर (आदि संबंधी बसव्यता) उदायी और भूतानन्द हस्तिराज के पूर्व और पश्चात भवों के निर्देशपूर्वक सिद्धिगमन-प्ररूपणा 601, ताड़ फल को हिलाने गिराने ग्रादि से सम्बन्धित जीवों को लगने वाली क्रिया 602, [22] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org