________________ दिग्दर्शन 518, गोशालक का अन्तिम भव-महाविदेश क्षेत्र में दृढप्रतिज्ञ केवली के रूप में .. मोक्षगमन 525. सोलहवां शतक प्राथमिक उद्देशकपरिचय 528, सोलहवें शलक के उद्देशकों के नाम 530 प्रथम उद्देशक : अधिकरणी अधिकरणी में वायूकाय की उत्पत्ति और विनाश संबंधी निरूपण 531, अंगार कारिका में अग्निकाय की स्थिति का निरूपण 532, तप्त लोहे को पकड़ने में किया संबंधी प्ररूपणा 532, जीव और चौबीस दण्डकों में अधिकरणी-अधिकरण, साधिकरणी-निरधिकरणी आदि तथा आत्मप्रयोगनिर्वतित आदि अधिकरण संबंधी प्ररूपणा 534, शरीर, इन्द्रिय एवं योगों को बांधते हुए जीवों के विषय में अधिकरणी-अधिकरणविषयक प्ररूपणा 537 द्वितीय उद्देशक : जरा जीवों और चौबीस दण्डकों में जरा और शोक का निरूपण 541. शकेन्द्र द्वारा भगवत-दर्शन. प्रश्नकरण एवं अवग्रहानुज्ञाप्रदान 542, जीव और चौबीस दण्डकों में चेतनकृत कर्म की प्ररूपणा 546 531 548 ततीय उद्देशक : कर्म अष्ट कर्मप्रकृतियों के वेदावेद आदि का प्रज्ञापना के प्रति देशपूर्वक निरूपण 548, कायोत्सर्ग स्थित अनगार के अर्स-छेदक को तथा अनगार को लगने वाली क्रिया 549 चतुर्थ उद्देशक : यावतीय तपस्वी श्रमणों के जितने कर्मों को खपाने में नैरयिक लाखों करोड़ों वर्षों में भी असमर्थ, 552 पंचम उद्देशक : गंगदत्त शक्रेन्द्र के पाठ प्रश्नों का भगवान द्वारा उत्तर 556, शक्रन्द्र के शीघ्र चले जाने का कारण: महाशुक्र सम्यग्दृष्टिदेव के तेज आदि की असहनशीलता--भगवत्कथन 557, सम्यग्दृष्टि गंगदत्त द्वारा मिथ्यादृष्टि देव को उक्त सिद्धान्तसम्मत तथ्य का भगवान् द्वारा समर्थन, धर्मोपदेश एवं भव्यत्वादि कथन 559, गंगदत्त की दिव्य ऋद्धि आदि के संबंध में प्रश्न : भगवान द्वारा पूर्वभव वत्तान्तपूर्वक विस्तत समाधान 562, गंगदत्त देव की स्थिति तथा भविष्य में मोक्षप्राप्ति 565 छठा उद्देशक : स्वप्नदर्शन स्वप्नदर्शन के पांच प्रकार 566, सूप्तजागृत अवस्था में स्वप्नदर्शन का निरूपण 567, जीवों तथा चौवीस दण्डकों के सुप्त, जागृत एवं सुप्त-जागृत का निरूपण 567, संवृत आदि में तथारूप स्वप्नदर्शन की तथा इनमें सुप्त आदि की प्ररूपणा 568, स्वप्नों और महास्वप्नों की संख्या का निरूपण 569, तीर्थकरादि महापुरुषों की माताओं को गर्भ में तीर्थकरादि के आने पर दिखाई देने वाले महास्वप्नों की संख्या का निरूपण 570, भगवान महावीर को छम [21] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org