________________ तेजोलेश्याप्रहार, गोशालकरक्षार्थ भगवान् द्वारा शीतलेश्या द्वारा प्रतीकार 452, भगवान द्वारा तेजोलेश्या शमन का वृत्तान्त तथा गोशाला को तेजोलेश्याविधि का कथन 454, गोशालक द्वारा भगवान के साथ मिथ्यावाद, एकान्त परिवत्यपरिहारवाद की मान्यता और भगवान् से पृथक् विचरण 456, गोशालक को तेजोलेश्या की प्राप्ति, अहंकारवश जिनप्रलाप एवं भगवान् द्वारा स्ववक्तव्य का उपसंहार 458, भगवान् द्वारा अपने-गोशालक के-अजिनत्व का प्रकाशन सुन कर कुभारिन की दुकान पर कुपित गोशालक का ससंघ जमघट 459, गोशालक द्वारा प्रर्थलोलुप वणिक-वर्ग-विनाशदृष्टान्त-कथनपूर्वक प्रानन्द स्थविर को भगवत्विनाशकथनचेष्टा 460, मोशालक के साथ हुए वार्तालाप का निवेदन, गोशालक के तप-तेज का निरूपण, श्रमणों को उसके साथ प्रतिवाद न करने का भगवत्संदेश 467, गोशालक के साथ धर्मचर्चा न करने का प्रानन्दस्थविर द्वारा भगवदादेश-निरूपण 470, भगवान के समक्ष गोशालक द्वारा अपनी ऊटपटांग मान्यता का निरूपण 471, भगवान द्वारा गोशालक को चोर के दृष्टान्तपूर्वक स्वभ्रान्तिनिवारण-निर्देश 477, भगवान् के प्रति गोशालक द्वारा अवर्णवादमिथ्यावाद 478, गोशालक को स्वकर्तव्य समझाने वाले सर्वानुभूति अनगार का गोशालक द्वारा भस्मीकरण 478, गोशालक द्वारा भगवान के किये गये अवर्णवाद का विरोध करने वाले सुनक्षत्र अनगार का समाधिपूर्वक मरण 450, गोशालक को भगवान् का उपदेश, ऋद्ध गोशालक द्वारा भगवान पर फेंकी हई तेजोलेश्या से स्वयं का दहन 481, ऋद्ध गोशालक की भगवान् के प्रति मरण घोषणा, भगवान द्वारा प्रतिवादपूर्वक गोशालक के अन्धकारमय भविष्य का कथन 482, श्रावस्ती के नागरिकों द्वारा गोशालक के मिथ्यावादी और भगवान के सम्यग्वादी होने का निर्णय 483, निग्रन्थ श्रमणों को गोशालक के साथ धर्मचर्चा करने का भगवान् का आदेश 484, निम्रन्थों की धर्मचर्चा में गोशालक निरुत्तर, पीडा देने में असमर्थ, प्राजीविक स्थविर भगवान की निश्राय में 485, गोशालक की दुर्दशानिमित्तकविविध चेष्टाएँ 487, भगवत्प्ररूपित गोशालक की तेजोलेश्या की शक्ति 488, निजपापप्रच्छादनार्थ गोशालक द्वारा अष्ट चरम एवं पानक-अपानक की कपोलकल्पित मान्यता का निरूपण 489, अयंपुल का सामान्य परिचय, हल्ला के आकार की जिज्ञासा का उद्भव, गोशालक से प्रश्न पूछने का निर्णय, किन्तु गोशालक की उन्मन्तवत् दशा देख अयं पुल का वापिस लौटने का उपक्रम 492, अयंपुल की डगमगाती श्रद्धा स्थिर हुई, गोशालक से समाधान पाकर सन्तुष्ट, गोशालक द्वारा बस्तुस्थिति का प्रलाप 493, प्रतिष्ठालिप्सावश गोशालक द्वारा शानदार मरणोत्तर क्रिया करने का शिष्यों को निर्देश 496, सम्यक्त्वप्राप्त गोशालक द्वारा अप्रतिष्ठापूर्वक मरणोत्तर क्रिया करने का शिष्यों को निर्देश 497, आजीविक स्थविरों द्वारा अप्रतिष्ठापूर्वक गुप्त मरणोत्तर क्रिया करके प्रकट में प्रतिष्ठापूर्वक मरणोत्तरक्रिया 499, भगवान का मेंढिक ग्राम में पदार्पण, रोगाकान्त होने से लोकप्रवाद 500, अफवाह सुन कर सिंह अनगार को शोक, भगवान द्वारा सन्देश पाकर सिह अनगार का उनके पास आगमन 502, रेवती गाथापत्नी का दान 504, सुनक्षत्र अनगार की भावी गति-उत्पत्ति संबंधी निरूपण 509 गोशालक का भविष्य 510, गोशालक देवभव से लेकर मनुष्यभवतक : विमलवाहन राजा के रूप में 510, सुमंगल अनगार की भावी गति : सर्वार्थसिद्ध विमान एवं मोक्ष 517, गोशालक के भावी दीर्घकालीन भवम्रमण का [ 20 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org