________________ 410 अष्टम उद्देशक : (विविध पृथ्वियों का परस्पर) अन्तर रत्नप्रभा पृथ्वी से लेकर ईषत्प्रारभार पृथ्वी एवं प्रलोक पर्यन्त परस्पर अबाधान्तर की प्ररूपणा 410. शालवृक्ष, शालयष्टिका और उदुम्बरयष्टिका के भावी भवों की प्ररूपणा 413, अम्बड़ परिव्राजक के सात सौ शिष्य पाराधक हुए 415, अम्बड परिव्राजक को दो भवों के अनन्तर मोक्षप्राप्ति की प्ररूपणा 415, अव्याबाध देवों की अव्याबाधता का निरूपण 416, शिर काट कर कमण्डल में डालने की शक्रेन्द्र की वैश्यि शक्ति 417, जभक देवों का स्वरूप, भेद, स्थिति 418 421 नौवाँ उद्देशक : भावितात्मा अनगार भावितात्मा अनगार की ज्ञान संबंधी और प्रकाशपुद्गलस्कन्ध सम्बन्धी प्ररूपणा 421, चौबीस दण्डकों में प्रात्त-अनात्त, इष्टानिष्ट प्रादि पुद्गलों की प्ररूपणा 422, महद्धिक वैक्रियशक्तिसम्पन्न देव की भाषासहस्रभाषणशक्ति 424, सूर्य का अन्वर्थ तथा उनकी प्रभादि के शुभत्व की प्ररूपणा 424 श्रामण्य-पर्याय-सुख की देवसुख के साथ तुलना 425. बसवाँ उद्देशक : केवली केवली एवं सिद्ध द्वारा छदमस्थादि को जानने-देखने का सामर्थ्य निरूपण 428. केवली और सिद्धों द्वारा भाषण, उनमेष-निमेषादि क्रिया-प्रक्रिया की प्ररूपणा 429, केवली द्वारा नरकपथ्वी से लेकर ईषत्प्रारभार पृथ्वी तथा अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक को जानने-देखने की प्ररूपणा 430. 428 पन्द्रहवां शतक : गोशालकचरित प्राथमिक-४३३, मध्य मंगलाचरण 435, श्रावस्ती निवासी हालाहल का परिचय एवं गोशालक का निवास 435, गोशालक का छह दिशाचरों को अष्टांगमहानिमित्त शास्त्र का उपदेश एवं सर्वज्ञादि अपलाप 436, गोशालक की वास्तविकता जानने की गौतम स्वामी की जिज्ञासा, भगवान द्वारा समाधान 438, गोशालक के माता-पिता का परिचय तथा भद्रा माता के गर्भ में प्रागमन 439, शरवण सनिवेश में गोबहल ब्राह्मण की गोशाला में मखलि-भद्रा का निवास, गोशालक का जन्म और नामकरण 440, यौवनवयप्राप्त गोशालक द्वारा स्वयं मखबत्ति 441, गोशालक के साथ प्रथम समागम का वृत्तान्त : भगवान् के श्रीमुख से 442, विजय गाथापति के गृह में भगवत्पारणा, पंचद्रव्य प्रादुर्भाव, गोशालक द्वारा प्रभावित होकर भगवान् का शिष्य बनने का वृत्तान्त 443, द्वितीय से चतुर्थ मासखमण के पारणे तक का वृत्तान्त, भगवान के अतिशय से पुनः प्रभावित गोशालक द्वारा शिष्यताग्रहण 446, तिल के पौधे को लेकर भगवान् को मिथ्यावादी सिद्ध करने को गोशालक की कुचेष्टा 450, वैश्यायन के साथ गोशालक की छेड़खानी, उसके द्वारा [19] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org