________________ चौबीस दण्डकों में अनन्तर खेदोपपन्नादि अनन्तर खेदनिर्गतादि एवं प्रायूष्यबन्ध की प्ररूपणा 363 वितीय उद्देशक : उन्माद (प्रकार, अधिकारी) 372 354 उन्मादः प्रकार, स्वरूप और चौबीस दण्डकों में सहेतुक प्ररूपणा 365, स्वाभाविक वृष्टि और देवकृतवृष्टि का सहेतुक निरूपण 368, ईशान देवेन्द्रादि चतुर्विधदेवकृत तमस्काय का सहेतुक निरूपण 369 तृतीय उद्देशक : महाशरीर द्वारा अनगार आदि का व्यतिक्रमण भावितात्मा अनगार के मध्य में से होकर जाने का देव का सामर्थ्य-असामर्थ्य 372, चौबीस दण्डकवर्ती जीवों में सत्कारादि विनय-प्ररूपणा 373, अल्पद्धिक-महद्धिक-समद्धिक देव-देवियों के मध्य में से व्यतिक्रमनिरूपण 375, जीवाभिगमसूत्रातिदेशपूर्वक नैरयिकों के द्वारा बीस प्रकार के परिणामानुभव का प्रतिपादन 377 चतुर्थ उद्देशक : पुद्गल (आदि के परिणाम) त्रिकालवी विविध स्पर्शादिपरिणत प्रदगल की वर्णादिपरिणाम प्ररूपणा 379, जीव के त्रिकालापेक्षी सूखी दु:खी ग्रादि विविध परिणाम 380, परमाण-पूगल शाश्वतता-प्रशाश्वतता एवं चरमता-अचरमता का निरूपण 381, परिणाम: प्रज्ञापनातिदेशपूर्वक भेद-प्रभेद निरूपण 386 पञ्चम उद्देशक : अग्नि संग्रहणी-गाथा 384, चौबीस दण्डकों की अग्नि में होकर गमन-विषयक प्ररूपणा 384, चौबीस दण्डकों में शब्दादि दस स्थानों में इष्टानिष्ट स्थानों की प्ररूपणा 388, महद्धिक देव का तिर्यक पर्वतादि उल्लंघन-प्रलंघनसामर्थ्य-असामर्थ्य 390 छठा उद्देशक : किमाहार (आदि) चौबीस दण्डकों में आहारपरिणाम, योनिक-स्थितिनिरूपण 392, चौबीस दण्डकों में वीचिद्रव्यअवो चिद्रव्याहार-प्ररूपणा 393, शकेन्द्र से अच्युतेन्द्र तक देवेन्द्रों के दिव्य भोगों की उपभोग पद्धति 393 सातवाँ उद्देशक संश्लिष्ट भगवान द्वारा गौतम स्वामी को इस भव के बाद अपने समान सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होने का प्राश्वासन 398, अनुत्तरीपपातिक देवों की जानने-देखने की शक्ति को प्ररूपणा 399, छह प्रकार का तुल्य 400, द्रव्यतुल्यनिरूपण 400, क्षेत्रतुल्यनिरूपण 401, कालतुल्यनिरूपण 401, भवतुल्यनिरूपण 402, भावतुल्यनिरूपण 402, संस्थानतुल्यनिरूपण 404 अनशनकर्ता अनगार द्वारा मूढता-अमूढतापूर्वक पाहाराध्यवसायप्ररूपणा 405, लबसप्तम देव : स्वरूप एवं दृष्टान्तपूर्वक कारणनिरूपण 406, अनुत्तरोपपातिक देव : स्वरूप, कारण और उपपातहेतुक कर्म 408 .. 392 398 [18] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org