________________ वैराग्यपूर्वक प्रवज्याग्रहण, मोक्षगमन 321, राज्य-अप्राप्ति निमित्त से वैरानुबद्ध अभीचिकुमार का वोतिभयनगर छोड़ कर चम्पानगरी में निवास 323, श्रमणोपासक धर्मरत अभीचिकुमार को वैरविषयक आलोचन-प्रतिक्रमण न करने से असुरकुमारत्वप्राप्ति 324, देवलोकच्यवनानन्तर अभीचि को भविष्य में मोक्षप्राप्ति 325 सातवां उद्देशक : भाषा भाषा के आत्मत्व, रूपित्व, अचित्तत्व, अजीवत्व का निरूपण 326, भाषा-जीवों की, अजीवों की नहीं 326, बोलते समय ही भाषा, अन्य समय में नहीं 326, भाषा-भेदन बोलते समय ही 327, चार प्रकार की भाषा 327, मनः आत्मा मन नहीं, जीव का है 329, मन के चार प्रकार 330, काय आत्मा है या अन्य ? रूपी-अरूपी है, सचित्त-अचित्त है, जीव-अजीव है ? 330, जीव-अजीव दोनों कायरूप 331, त्रिविध जीवस्वरूप को लेकर कायनिरूपण-कायभेदनिरूपण 331, काया के सात भेद 331, मरण के पांच प्रकार 334, आबीचिमरण के भेदप्रभेद और स्वरूप 334. अवधिमरण के भेद-प्रभेद और उनका स्वरूप 337, प्रात्यन्तिकमरण के भेद-प्रभेद और उनका स्वरूप 337, बालमरण के भेद और स्वरूप 338, पण्डितमरण के भेद और स्वरूप 339 आठवाँ उद्देशक : कर्मप्रकृति 341 प्रज्ञापना के प्रति देशपूर्वक कर्मप्रकृतिभेदादिनिरूपण 341 342 नवम उद्देशक : अनगार में केयाघटिका (वक्रियशक्ति) रस्सी बंधी घड़िया, स्वर्णादिमंजूषा, वाँस आदि की चटाई, लोहादिभार लेकर चलनेवाले व्यक्तिसम भावितात्मा अनगार की बैक्रियशक्ति 342, चमचेड़-यज्ञोपवीत-जलौका-बीजबीजसमुद्रवायस आदि की क्रियावत् भावितात्मा अनगार की वैक्रियशक्ति 344, चक्र, छत्र, चर्म, रत्नादि लेकर चलने वाले पुरुषवत् भावितात्मा अनगार की विकर्वणशक्तिनिरूपण 346, कमलनाल तोड़ते हुए चलने वाले पुरुषवत् अनगार को विक्रियाशक्ति 347, मणालिका, बनखण्ड एवं पूष्पकरिणी बना कर चलने की वैक्रियाक्तिनिरूपण 347, मायी (प्रमादी) द्वारा विकुर्वगा, अप्रमादी द्वारा नहीं 349 चौदहवां शतक प्राथमिक उद्दे शक परिचय 351, उद्देशकों के नाम 355 प्रथम उद्देशक चरम (-परम के मध्य को गति आदि) भावितात्मा अनगार की चरम-परम मध्य में गति, उत्पत्तिप्ररूपणा 356, चौबीस दण्डकों में शीघ्रगतिविषयक प्ररूपणा 357, चौबीस दण्डकों में अनन्तरोपपन्नकादिप्ररूपणा 359, अनन्तरोपपन्न कादि चौबीस दण्डकों में आयूष्यबंध-प्ररूपणा 360, चौबीस दण्डकों में अनन्तर निर्गतादि-प्ररूपणा 361, अनन्तर निर्गतादि चौबीस दण्डकों में आयुष्यबन्ध्र-प्ररूपणा 362 , [ 17 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org