________________ 258 271 द्वितीय उद्देशक : देव चतुर्विध देवप्ररूपणा 258, भवनपति देवों के प्रकार, असुरकुमार एवं उनके विस्तार की प्ररूपणा 258, संख्यात-असंख्यात विस्तत भवनपति-प्रावासों में विविध-विशेषण-विशिष्ट असुर कुमारादि से सम्बन्धित उनपचास प्रश्नोत्तर 259, वाणव्यन्तर देवों की प्राबाससंख्या, विस्तार, उत्पाद, उद्वर्तना और सत्ता की प्ररूपणा 261, ज्योतिष्क देवों की विमानावाससंख्या. विस्तार एवं विविध-विशेषण-विशिष्ट की उत्पत्ति आदि की प्ररूपणा 262, कल्पनासी, प्रैवेयक एवं अनुत्तर देवों की विमानावाससंख्या, विस्तार, उत्पत्ति आदि की प्ररूपणा 262, चतुर्विध देवों के संख्यात-असंख्यात विस्तत प्रावासों में सम्यादष्टि प्रादि के उत्पाद, उदवर्तन एवं सत्ता की प्ररूपमा 260, एक लेश्यावाले का दूसरी लेश्या वाले देवों में उत्पाद-निरूपण 268 तृतीय उद्देशक : अनन्तर चौबीस दण्डकों में अनन्तराहारादि यावत् परिचारणा की प्ररूपणा 270 चतुर्थ उद्देशक : नरकपृथिवियाँ द्वार गाथाएं तथा सात प्रथ्वियाँ 271, द्वार---प्रथम नैरयिक-नरकावासों की संख्यादि अनेक पदों से परस्पर तुलना 271, द्वितीय द्वार (सात पृथ्वियों के नैयिकों की एकेन्द्रिय जीव) पृथ्वीस्पर्शानुभव प्ररूपणा 273, तृतीय प्रणिधिद्वार-सात पृध्वियों की मोटाई आदि की प्ररूपणा 274, चतुर्थ निरयान्तद्वार--सात पृथ्वियों के निकटवर्ती एकेन्द्रियों को महाकर्म अल्पमतादि प्ररूपणा 274, पंचमद्वार--लोक-त्रिलोक का आयाम-मध्यस्थान निरूपण 275, छठा दिशा, विदिशाप्रवहादि द्वार-ऐन्द्री आदि दस दिशा-विदिशात्रों का स्वरूपनिरूपण 277, सप्तम प्रवर्तनद्वार-लोक-पंचास्तिकायविरूपण 279, आठवां अस्तिकायस्पर्शनद्वारपंचास्तिकायप्रदेश-प्रद्धासमयों का परस्पर जघन्योत्कृष्ट प्रदेश-स्पर्शनानिरूपण 283 नौवाँ अवगाहनाद्वार---प्रस्तिकाय-प्रद्धासमयों का परस्पर विस्तृत प्रदेशावगाहनानिरूपण 297, दसवाँ जीवावगाढतार---पांच एकेन्द्रियों का परस्पर अवगाहन निरूपण 304, ग्यारहवाँ अस्ति-प्रदेश-लिषीदनद्रार- धर्माधर्माका शास्तिकायों पर बैठने प्रादि का दृष्टान्तपूर्वक निषेधनिरूपण 305, बारहवां द्वार--...बहसम, सर्वसंक्षिप्त-विग्रह-विग्रहिक लोक का निरूपण 307, तेरहवां द्वार-लोकसंस्थान-लोकसंस्थाननिरूपण 308. माधोलोक-तिर्यकलोक-ऊर्वलोक के अल्पबहुत्व का निरूपण 309 छठा उद्देशक : उपपात (आदि) चौवीस दण्डकों में सान्तर-निरन्तर उपपात-उद्वर्तननिरूपण 311, चरमचंच आवास का वर्णन एवं प्रयोजन 311 / उदायननरेशवृत्तान्त 314, भगवान् का राजगृहनगर से विहार, चम्पापुरी में पदार्पण 314, उदायननप, राजपरिवार, वीतिभयनगर आदि का परिचय 314, पौषधरत उदायन नप का भगवदवन्दनादि-अध्यवसाय 316, भगवान का वीतिभयनगर में पदार्पण, उदायन द्वारा प्रव्रज्याग्रहण का संकल्प 317, स्वपुत्र कल्याणकांक्षी उदायन नप द्वारा अभीचिकुमार के बदले अपने भानजे का राज्याभिषेक 318, केशी राजा से अनुमत उदायन नृप के द्वारा त्याग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org