________________ 192 चन्द्र और सूर्य को अग्रमहिषियों का वर्णन 189, चन्द्र-सूर्य के कामभोग सुखानुभव का निरूपण 189 सप्तम उद्देशक : लोक का परिमाण लोक का परिमाण 192, लोक में परमाणमात्र प्रदेश में भी जीव के जन्म-मरण से अरिक्तता को दृष्टान्तपूर्वक प्ररूपणा 192, चौबीस दण्डकों की आवाससंख्या का अतिदेशपूर्वक निरूपण 194, एक जीव या अनेक जीवों के चौबीस दण्डक बत्ती पावासों में विविध रूपों में अनन्तश: उत्पन्न होने की प्ररूपणा 194, एक जीव या अनेक जीवों के माता-पिता आदि के, शत्रु आदि के, राजादि के तथा दासादि के रूप में अनन्तशः उत्पन्न होने की प्ररूपणा 196 आठवाँ उद्देशक : नाग महद्धिक देव की नाग, मणि, वृक्ष में उत्पत्ति, महिमा और सिद्धि 101, शीलादिरहित बानरादि का नरकगामित्वनिरूपण 203 201 नवम उद्देशक : देव 205 देवों के पांच प्रकार और स्वरूपनिरूपण-भव्यद्रव्यदेव, नरदेव, धर्मदेव, देवाधिदेव और भावदेव, 205, पंचविध देवों की उत्पत्ति का सकारण निरूपण 207, पंचविध देवों की जघन्य-उत्कृष्ट स्थिति का निरूपण 210, पंचविध देवों की वैक्रिय शक्ति का निरूपण 212, पंचविध देवों की उद्धर्तना का निरूपण 213, स्व-स्वरूप में पंचविध देवों को संस्थिति का निरूपण 215, पंचविध देवों के अन्तरकाल का निरूपण 216, पंचविध देवों का अल्पबहुत्व 218, भवनवासी ग्रादि देवों का अल्पबहुत्व 218 दशम उद्देशक : आत्मा 220 आत्मा के आठ प्रकार 220, द्रव्यात्मा प्रादि पाठों का परस्पर सहभाव-असहभाव निरूपण 221, प्रात्माओं का अल्पबहुत्व 226, प्रात्मा संबंधी विविध प्रश्नोत्तर 229, परमाणु द्विप्रदेशी त्रिप्रदेशी ग्रादि पुदगल-स्कन्ध संबंधी भंग 232 तेरहवां शतक 241 प्राथमिक-दस उद्देशकों का परिचय 239, दस उद्देशकों के नाम 241 प्रथम उद्देशक : पृथ्वी नरकपृथ्वियाँ, रत्नप्रभा के नरकावासों की संख्या और उनका विस्तार 241, रत्नप्रभा के संख्यात योजन विस्तृत नरकावासों से उद्वर्तना सम्बन्धी उनचालीस प्रश्नोत्तर 245, शर्कराप्रभादि छह पृथ्वियों के नरकावासों की संख्या तथा संख्यात-असंख्यात योजन विस्तृत नरकों में उत्पत्ति, उदवर्तना तथा सत्ता की संख्या का निरूपण 250, संख्यात-असंख्यात योजन विस्तृत नरकों में सम्यग्-मिथ्या-मिश्रदृष्टि नैरयिकों के उत्पाद उद्वर्तना एवं अविरहितविरहित की प्ररूपणा 253 [15] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org