SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम शतक : उद्देशक-४ ] [67 11. एवं जीवेण वि तिणि आलावगा भाणितब्बा। [11] इसी प्रकार 'जीव' के साथ भी तीन आलापक कहने चाहिए / विवेचन--पुद्गल, स्कन्ध और जीव के विषय में त्रिकाल शाश्वत प्रादि प्ररूपणा–प्रस्तुत पाँच सूत्रों में पुद्गल अर्थात् परमाणु, स्कन्ध और जीव के भूत, वर्तमान और भविष्य में सदैव होने की प्ररूपणा की गई है। वर्तमानकाल को शाश्वत कहने का कारण- वर्तमान प्रतिक्षण भूतकाल में परिणत हो रहा है और भविष्य प्रतिक्षण वर्तमान बनता जा रहा है, फिर भी सामान्य रूप से, एक समय रूप में, वर्तमानकाल सदैव विद्यमान रहता है। इस दृष्टि से उसे शाश्वत कहा है। पुद्गल का प्रासंगिक अर्थ यहाँ पुद्गल का अर्थ 'परमाणु' किया गया है। यों तो पुद्गल 4 प्रकार के होते हैं स्कन्ध, देश, प्रदेश और परमाणु / किन्तु यहाँ केवल परमाणु ही विवक्षित है क्योंकि स्कन्ध के विषय में आगे अलग से प्रश्न किया गया है / छमस्थ मनुष्य को मुक्ति से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर 12. छउमस्थे णं भंते ! मणसे तोतमणतं सास समयं केवलेणं संजमेणं, केवलेणं संवरेणं, केवलेणं बंभचेरवासेणं, केवलाहि पवयण पाताहि सिज्झिसु बुझिसु जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिसु ? गोतमा ! नो इण? सम? / से केणढणं माते ! एवं वुच्चाइ तं चेव जाव अंतं करेंसु ? गोतमा ! जे केइ अंतकरा वा, अंतिमसरीरिया वा सम्वदुक्खाणमंतं करेंसु वा करेंति वा करिस्संति वा सम्वे ते उप्पन्ननाण-दसणधरा अरहा जिणे केवली भवित्ता ततो पच्छा सिझंति बुज्झति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंसु वा कति वा करिस्संति वा, से तेण?णं गोतमा! जाव सव्वदुक्खाणमंतं करें। [12. प्र.] भगवन् ! क्या बीते हुए अनन्त शाश्वत काल में छद्मस्थ मनुष्य केवल संयम से, केवल संवर से, केवल ब्रह्मचर्यवास से और केवल (अष्ट) प्रवचनमाता (के पालन) से सिद्ध हुआ है, बुद्ध हुअा है, यावत् समस्त दुःखों का अन्त करने वाला हुआ है ? [12. उ.] हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। [प्र.) भगवन् ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं कि पूर्वोक्त छद्मस्थ मनुष्य ""यावत् समस्त दुःखों का अन्तकर नहीं हुआ ? उ.] गौतम ! जो भी कोई मनुष्य कर्मों का अन्त करने वाले, चरमशरीरी हुए हैं, अथवा समस्त दुःखों का जिन्होंने अन्त किया है, जो अन्त करते हैं या करेंगे, वे सब उत्पन्नज्ञानदर्शनधारी (केवलज्ञानी-केवलदर्शनी), अर्हन्त, जिन, और केवली होकर तत्पश्चात् सिद्ध हुए हैं, बुद्ध हुए हैं, मुक्त हुए हैं, परिनिर्वाण को प्राप्त हुए हैं, और उन्होंने समस्त दुःखों का अन्त किया है, वे ही करते हैं और करेंगे; इसी कारण से हे गौतम ! ऐसा कहा है कि यावत् समस्त दुःखों का अन्त किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy