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________________ [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र औपक्रमिकी वेदना का अर्थ है जो कर्म अपना अबाधाकाल पूर्ण होने पर स्वयं ही उदय में पाए हैं, अथवा उदीरणा द्वारा उदय में लाए गए हैं. उन कर्मों का फल अज्ञानपूर्वक या अनिच्छा से भोगना। यथाकर्म, यथानिकरण का अर्थ यथाकर्म यानी जो कर्म जिस रूप में बांधा है, उसी रूप से, और यथानिकरण यानी विपरिणाम के कारणभूत देश, काल आदि करणों की मर्यादा का उल्लंघन न करके। पापकर्म का प्राशय प्रस्तुत में पापकर्म का आशय है --सभी प्रकार के कर्म / यों तो पापकर्म का अर्थ अशुभकर्म होता है, इस दृष्टि से जो मुक्ति में व्याघात रूप हैं, वे समस्त कर्ममात्र ही अशुभ हैं, दुष्ट हैं, पाप हैं / क्योंकि कर्ममात्र को भोगे बिना छुटकारा नहीं है।' पुद्गल, स्कन्ध और जीव के सम्बन्ध में त्रिकाल शाश्वत प्ररूपणा --- 7. एस णं भंते ! पोग्गले तीतमणंतं सासयं समयं भुवि' इति वत्तव्वं सिया ? हता, गोयमा ! एस णं पोग्गले तीतमणतं सासयं समयं 'भुवि' इति वत्तवं सिया / (7. प्र.] भगवन् ! क्या यह पुद्गल-परमाणु अतीत, अनन्त (परिमाणरहित), शाश्वत (सदा रहने वाला) काल में था-ऐसा कहा जा सकता है ? [7. उ.] हाँ, गौतम ! यह पुद्गल अतीत, अनन्त, शाश्वतकाल में था, ऐसा कहा जा सकता है। 8. एस णं भते ! पोग्गले पड़प्पन्न सासयं समयं भवति' इति वत्तव्वं सिया ? हंता, गोंयमा ! तं चेव उच्चारेतन्वं / [8. प्र.] भगवन् ! क्या यह पुद्गल वर्तमान शाश्वत-सदा रहने वाले काल में है, ऐसा कहा जा सकता है ? [8. उ.] हाँ, गौतम ! ऐसा कहा जा सकता है / (पहले उत्तर के समान ही उच्चारण करना चाहिए।) गंभते ! पोग्गले प्रणागतमणतं सासतं समयं 'भविस्मति' इति वत्तन्वं सिया ? हंता, गोयमा ! तं चैव उच्चारतव। . प्र.] हे भगवन् ! क्या यह पुद्गल अनन्त और शाश्वत भविष्यकाल में रहेगा, ऐसा कहा जा सकता है ? {8. उ.] हाँ, गौतम ! ऐसा कहा जा सकता है / (उसो पहले उत्तर के समान उच्चारण करना चाहिए। 10. एवं खंधेण वि तिणि पालावगा। [10] इसी प्रकार के 'स्कन्ध' के साथ भी तीन (त्रिकाल सम्बन्धी) पालापक कहने चाहिए। 1. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 65. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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